बैंगलोर: कर्नाटक कांग्रेस के नेता राज्य सरकार की चुनावी गारंटियों का विरोध कर रहे हैं। दरअसल, पिछले साल कर्नाटक विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की बड़ी जीत और उनके महत्वाकांक्षी 'पांच गारंटी' वादों के बावजूद, पार्टी आम चुनावों के दौरान राज्य में भाजपा को प्रचंड जीत हासिल करने से नहीं रोक सकी। भाजपा के नेतृत्व वाले NDA ने 19 सीटें हासिल कीं, जबकि कांग्रेस केवल 9 सीटें जीत पाई। NDA के अंदर भाजपा ने 17 सीटों पर जीत दर्ज की, वहीं, JDS को दो सीट पर सफलता मिली।
इसके बाद, बागलकोट से कांग्रेस विधायक जे टी पाटिल ने सार्वजनिक रूप से मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से गारंटियों का पुनर्मूल्यांकन करने की अपील की। अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए पाटिल ने कहा कि, "कई जगहों पर वादों पर काम नहीं हुआ है, इसलिए हम मुख्यमंत्री से वादों पर पुनर्विचार करने की अपील करेंगे। आखिर क्यों? एक तरफ विकास नहीं हुआ और दूसरी तरफ लाभार्थियों ने वोट नहीं दिया। फिर क्यों?" कई अन्य नेताओं ने भी पाटिल की चिंताओं को दोहराया है, कुल तीन विधायकों ने गारंटी योजना पर पुनर्विचार की मांग की है। उनका तर्क है कि गारंटी, जो उनके विधानसभा चुनाव अभियान में महत्वपूर्ण थी, लोकसभा चुनावों में अपेक्षित चुनावी समर्थन दिलाने में नाकाम रही।
लोकसभा चुनाव में पराजित हुए कांग्रेस के एक उम्मीदवार नेता लक्ष्मण ने कहा कि, "भाजपा कहती रही कि गारंटी देकर लोगों को आलसी बनाया जा रहा है। ऐसा लगता है कि लोगों ने इस विचार का समर्थन किया है। लोगों को गारंटी पसंद नहीं आई। मैं एक व्यक्ति और एक उम्मीदवार के तौर पर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से अपील करता हूं कि वे गारंटी पर फिर से विचार करें, क्योंकि लोगों ने इसके खिलाफ जनादेश दिया है।"
कांग्रेस विधायक बालकृष्ण ने कहा कि, "हम चुनाव में हथियार लेकर जाते हैं। अब हमें एहसास हो गया है कि यह कारगर नहीं रहा है और हमारे विरोधी भी कह रहे हैं कि गारंटी से हमें कोई मदद नहीं मिली है। चुनाव के बाद हमें पुनर्विचार करना होगा और विकल्पों पर विचार करना होगा, लेकिन यह हमारे नेतृत्व पर निर्भर है।" कर्नाटक कांग्रेस की गारंटियों में शक्ति योजना, जिसके तहत अल्पसंख्यकों और छात्राओं सहित महिलाओं को मुफ्त परिवहन की सुविधा देने का वादा है; अन्न भाग्य योजना, जिसके तहत परिवारों को पांच किलोग्राम खाद्यान्न मिलने का दावा है; गृह ज्योति योजना, जो 200 यूनिट प्रति माह तक मुफ्त बिजली देने की है; गृह लक्ष्मी योजना, जिसके तहत परिवार की महिला मुखियाओं को 2000 रुपए की आर्थिक मदद देने से संबंधित है; और युवा निधि योजना, जिसमे बेरोज़गार युवकों को 1500 से 3000 रुपए भत्ता देने की बात कही गई है। हालाँकि, या तो इन गारंटियों से लोगों को पर्याप्त लाभ नहीं मिला या फिर ये धरातल पर ठीक से लागू ही नहीं हो पाई, जिसके कारण कांग्रेस को कर्नाटक में चुनावी हार का सामना करना पड़ा।
हालाँकि, इस लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने वोटर्स को गारंटी कार्ड तक बांटे थे, जिसमे महिलाओं को 1 लाख रुपए सालाना देने की बात कही गई थी, लेकिन जनता ने इस पर भरोसा नहीं दिखाया। बैंगलोर, लखनऊ, दिल्ली जैसे कुछ शहरों से कुछ मुस्लिम महिलाएं सामने आई थीं, जिन्होंने गारंटी कार्ड दिखाते हुए कांग्रेस से 'खटाखट' नाम से प्रसिद्ध हो चुकी योजना के रुपए देने की मांग की थी। लेकिन, पार्टी नेता कन्नी काटते नज़र आए थे। गौर करने वाली बात ये भी है कि, डेढ़ सौ करोड़ की आबादी वाले देश में अगर 50 करोड़ भी गरीब माने जाएं, जिसमे से लगभग 25 करोड़ महिलाएं, इन्हे खटाखट योजना के तहत प्रति वर्ष 1 लाख रुपए देने पर हर साल सरकार को 25 लाख करोड़ का खर्च आएगा, जो देश के कुल बजट के आधे से भी अधिक है। यदि कांग्रेस चुनाव जीतकर इस वादे को पुरा कर भी देती, तो फिर रक्षा, सवास्थ्य, सड़क, जल, शिक्षा, ट्रांसपोर्ट, ट्रेड, कृषि, ईंधन जैसे कई अन्य महत्वपूर्ण कार्यों के लिए सरकार के हाथ खाली हो जाते। इसका जीता जागता उदाहरण कांग्रेस शासित कर्नाटक की है, जहाँ पार्टी को चुनावी गारंटियां पूरा करने के लिए SC/ST फंड में भी सेंधमारी करनी पड़ी।
कहाँ गया कर्नाटक सरकार का धन ?
बता दें कि, कांग्रेस ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान मुफ्त के चुनावी वादे किए थे, जिसके बाद वो सत्ता में तो आ गई, लेकिन इन गारंटियों को पूरा करने में सरकारी ख़ज़ाने पर बोझ बढ़ गया। एक बार जब कांग्रेस विधायकों ने अपने क्षेत्रों में विकास कार्य के लिए राज्य सरकार से धन जारी करने के लिए कहा, तो डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने ये कहते हुए मना कर दिया कि चुनावी गारंटियों को पूरा करने में हमें फंड लगाना पड़ा है, इसलिए अभी विकास कार्यों के लिए पैसा नहीं बचा है। इसके बाद जब इसी साल राज्य में सूखा पड़ा, तो राज्य सरकार के पास राहत कार्यों के लिए पैसे नहीं थे, उसने केंद्र से आर्थिक मदद मांगी। केंद्र ने उसे 3,454 करोड़ रुपये जारी किए।
हालाँकि, कांग्रेस के चुनावी वादों पर भी अर्थशास्त्रियों ने चिंता जताई थी कि मुफ्त की चीज़ों से सरकारी ख़ज़ाने पर बोझ बढ़ेगा और बाकी विकास कार्यों के लिए पैसा नहीं बचेगा, लेकिन उस समय पार्टी ने इन बातों को नज़रअंदाज़ कर दिया था। यही नहीं, सरकार बनने के बाद कांग्रेस ने अपनी मुफ्त की 5 चुनावी गारंटियों को पूरा करने के लिए SC/ST वेलफेयर फंड से 11 हजार करोड़ रुपये निकाल लिए थे। बता दें कि, कर्नाटक शेड्यूल कास्ट सब-प्लान और ट्रायबल सब-प्लान एक्ट के मुताबिक, राज्य सरकार को अपने कुल बजट का 24.1% SC/ST के उत्थान के लिए खर्च करना पड़ता है। लेकिन उन 34000 करोड़ में से भी 11000 करोड़ रुपए राज्य सरकार ने निकाल लिए। इसके बाद राज्य सरकार ने अल्पसंख्यकों के लिए एक योजना शुरू की, जिसमे उन्हें वाहन खरीदने पर 3 लाख तक की सब्सिडी देने का ऐलान किया था। उस योजना के अनुसार, यदि कोई अल्पसंख्यक 8 लाख रुपये की कार खरीदता है, तो उसे मात्र 80,000 रुपये का शुरूआती भुगतान करना होगा। 3 लाख रुपए राज्य सरकार देगी, यही नहीं बाकी पैसों के लिए भी बैंक ऋण सरकार ही दिलाएगी। वहीं, इस साल के बजट में कांग्रेस सरकार ने वक्फ प्रॉपर्टी के लिए 100 करोड़ और ईसाई समुदाय के लिए 200 करोड़ आवंटित किए हैं, फिर मंदिरों पर 10 फीसद टैक्स लगाने का बिल लेकर आई थी, लेकिन भाजपा के विरोध के कारण वो बिल पास नहीं हो सका। जानकारों का कहना है कि, धन का सही प्रबंधन नहीं करने के कारण, राज्य सरकार का खज़ाना खाली हो गया और उसके पास विकास कार्यों और अपनी जनता को सूखे से राहत देने के लिए पैसा नहीं बचा।
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