आखिर कहाँ चूक रही भारत की न्यायपालिका ? अदालतों में लगभग 5 करोड़ केस पेंडिंग

आखिर कहाँ चूक रही भारत की न्यायपालिका ? अदालतों में लगभग 5 करोड़ केस पेंडिंग
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नई दिल्ली: भारत की सर्वोच्च अदालत, सुप्रीम कोर्ट, में 82,831 केस पेंडिंग हैं, जो देश के इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी संख्या है। पिछले एक साल में ही 27,604 नए पेंडिंग केस दर्ज हुए हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में सुप्रीम कोर्ट में 38,995 नए केस दर्ज हुए, जिनमें से 37,158 मामलों का निपटारा हुआ। पिछले दस सालों में आठ बार पेंडिंग केसों की संख्या में वृद्धि हुई है, जबकि 2015 और 2017 में पेंडिंग केस कम हुए थे।

हाईकोर्ट्स में भी पेंडिंग मामलों की स्थिति चिंताजनक है। 2014 में उच्च न्यायालयों में कुल 41 लाख केस पेंडिंग थे, जो अब बढ़कर 59 लाख हो गए हैं। ट्रायल कोर्ट में भी पेंडिंग मामलों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है, जो 2014 में 2.6 करोड़ थी और अब 4.5 करोड़ तक पहुंच गई है। सुप्रीम कोर्ट में 2013 में पेंडिंग केसों की संख्या 50 हजार से बढ़कर 66 हजार हो गई थी, हालांकि 2014 में यह घटकर 63 हजार हो गई। जस्टिस पी सदाशिवम और आरएम लोढ़ा के कार्यकाल के दौरान, पेंडिंग केसों की संख्या में मामूली गिरावट आई थी, लेकिन 2018 से यह संख्या फिर से बढ़ने लगी। केस मैनेजमेंट सिस्टम और पेपरलेस कोर्ट जैसी सुधारात्मक योजनाओं के बावजूद, पेंडिंग मामलों की संख्या लगातार बढ़ती रही है। सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या 2009 में 26 से बढ़ाकर 31 की गई थी, फिर 2019 में इसे 31 से 34 कर दिया गया। इसके बावजूद पेंडिंग केसों की संख्या में कोई खास कमी नहीं आई। कोविड महामारी ने भी जस्टिस डिलीवरी सिस्टम को गंभीर रूप से प्रभावित किया, जिससे पेंडिंग मामलों की संख्या में भारी वृद्धि हुई।

यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिरकार पेंडिंग केसों की यह समस्या कब और कैसे हल होगी? एक बड़ा कारण यह है कि अदालतों में नेताओं और रसूखदार लोगों की अर्जियों पर प्राथमिकता के साथ सुनवाई होती है, जैसा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के मामले में देखा जा चुका है। आम आदमी के मामले ऐसे में लंबित रह जाते हैं। बड़े-बड़े वकील पैसे लेकर नेताओं के केस पहले सूचीबद्ध करवा देते हैं, जिससे अदालतों पर अनावश्यक बोझ बढ़ता है। कुछ मामले तो इतने स्पष्ट होते हैं कि उनके जल्द निपटारे की उम्मीद की जाती है, लेकिन फिर भी वे लंबित रहते हैं। उदाहरण के लिए, श्रद्धा वॉकर हत्याकांड, जिसमें आरोपी आफताब ने श्रद्धा के 35 टुकड़े करने की बात खुद कबूल की है, लेकिन 2022 के इस मामले में अब तक सजा नहीं सुनाई गई है। इसी प्रकार, उदयपुर में कन्हैयालाल के हत्यारों ने कत्ल करते समय खुद वीडियो बनाया था, जो एक अकाट्य सबूत है, लेकिन यह मामला भी 2022 से अदालती फैसले की राह देख रहा है।

श्रद्धा वॉकर और कन्हैयालाल के परिजन अभी भी न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इतने स्पष्ट मामलों में भी जब न्यायालय का फैसला नहीं आता है, तो अन्य मामलों का क्या होगा? इससे लगता है कि अदालतों की पेंडेंसी की समस्या कभी खत्म नहीं होने वाली। न्याय प्रणाली में सुधार और मामलों के त्वरित निपटारे के लिए सख्त कदम उठाए जाने की आवश्यकता है, ताकि जनता का न्याय व्यवस्था में विश्वास बना रहे।

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