मंगलवार को आख़िरकार विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह स्वीकार किया, कि कोरोना वायरस संक्रमण के ‘हवा से फैलने’ के सबूत हैं. इससे पहले वैज्ञानिकों के एक समूह ने डब्ल्यूएचओ को खुली चिट्ठी लिखकर इससे अपने मौजूदा दिशानिर्देशों में सुधार करने का आग्रह किया. डब्ल्यूएचओ में कोविड-19 महामारी से जुड़ी टेक्निकल लीड डॉक्टर मारिया वा केरख़ोव ने एक न्यूज़ ब्रीफ़िंग में कहा, “हम हवा के ज़रिए कोरोना वायरस फैलने की आशंका पर बात कर रहे हैं.”
वही इस पर जानकारी देते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन की बेनेदेत्ता आल्लेग्रांजी ने कहा कि कोरोना वायरस के हवा के माध्यम से फैलने के सबूत तो मिल रहे हैं लेकिन अभी यह निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता. आगे बताते हुए उन्होंने कहा, “सार्वजनिक जगहों पर, ख़ासकर भीड़भाड़ वाली, कम हवा वाली और बंद जगहों पर हवा के ज़रिए वायरस फैलने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता. जरुरी है की इन सबूतों को इकट्ठा कर समझा जाए. हम ये काम जारी रखेंगे.” इन चीज़ो को सामान्य लेना सही नहीं होगा.
बता दे, की इससे पहले तक विश्व स्वास्थ्य संगठन कहता रहा है कि सार्स-कोविड-2 (कोरोना) वायरस मुख्य रूप से संक्रमित व्यक्ति के नाक और मुँह से निकली सूक्ष्म बूंदों के माध्यम से फैलता है. डब्ल्यूएचओ ये भी कहता रहा है कि लोगों में कम से कम 3.3 फुट की दूरी होने से कोरोना वायरस संक्रमण की रोकथाम संभव है. लेकिन अब अगर हवा के ज़रिए वायरस फैलने की बात पूरी तरह साबित हो जाती है तो, 3.3 फ़ुट की दूरी और फ़िज़िकल डिस्टेंसिंग के नियमों में बदलाव करना होगा. वैज्ञानिको ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को एक खत लिखा, जिसमे वैज्ञानिकों ने गुज़ारिश की थी की उसे कोरोना वायरस के इस पहलू पर दोबारा विचार करना चाहिए और नए दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए.
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