दुनिया भर में कोरोना वायरस के इलाज के दौरान कई सुविधाओं को अभाव रहा है. बता दे कि वेंटीलेटर मिलने में हुई देरी के चलते चीन में बहुत से लोगों की जान चली गई. एक अध्ययन के अनुसार, चीन में कोरोना महामारी से मरने वाले केवल 20 फीसद लोगों को ही मैकेनिकल वेंटीलेटर की सुविधा मिल सकी. बता दें कि वेंटीलेटर मुख्य रूप से दो तरह के होते हैं. पहला मैकेनिकल वेंटीलेशन और दूसरा नॉन इनवेसिव वेंटीलेशन. मैकेनिकल वेंटीलेटर के ट्यूब को मरीज के सांस नली से जोड़ दिया जाता है, जो फेफड़े तक ऑक्सीजन ले जाता है. दूसरे प्रकार के वेंटीलेटर को सांस नली से नहीं जोड़ा जाता है, बल्कि मुंह और नाक को कवर करते हुए एक मास्क लागाया जाता है जिसके जरिये इस प्रक्रिया को अंजाम दिया जाता है.
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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि जर्नल ऑफ द अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन में प्रकाशित शोध में वुहान के 21 अस्पतालों का आकलन किया गया है. इसमें पता चला कि 21 से 30 जनवरी के बीच कोरोना से जिन लोगों की मौत हुई, उनमें से केवल 168 मरीजों को ही सांस लेने में सहायता प्रदान की गई.
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इसके अलावा साउथईस्ट यूनिवर्सिटी के एक अस्पताल के वैज्ञानिकों ने बताया कि, यद्यपि हॉस्पिटल में भर्ती सभी मरीजों को ऑक्सीजन थेरेपी दी गई, लेकिन केवल 46 मरीजों को मरने से पहले नाक या फेस मास्क के जरिये ऑक्सीजन दी गई. उन्होंने कहा कि एक तिहाई मरीजों को हाई फ्लो नेजल ऑक्सीजन थेरेपी दी गई, जबकि 72 मरीजों को नॉन इनवेसिव वेंटीलेशन दिया गया. अध्ययन में कहा गया है कि केवल 34 मरीजों को नली से ऑक्सीजन या मैकेनिकल वेंटीलेशन दिया गया.
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