नई दिल्ली : सड़क हादसों में होने वाली मौतों के आंकड़े को सरकार जानबूझकर कम दिखा रही है? या फिर इसके पीछे कोई और तकनीकि वजह हो सकती है? सड़क सुरक्षा पर आधारित विश्व स्वास्थ संगठन यानी WHO की ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट 2018 में कहा गया है कि पिछले साल सड़क हादसे की वजह से देश में करीब तीन लाख मौतें हुई हैं, जो भारत सरकार के सरकारी आंकड़ों से दोगुना हैं. वही सरकार की रिपोर्ट में ये आंकड़ा डेढ़ लाख है.
वही भारत सरकार के रिकॉर्ड की माने तो 2016 में भारत में सड़क हादसों में करीब डेढ़ लाख (150785) लोगों की मौत हुई. जिसमें 85% पुरुष और 15% महिलाएं शामिल हैं. जबकि डब्ल्यूएचओ का दावा है कि 2,99,091 (करीब 3 लाख) से ज्यादा लोगों ने सड़क हादसों में जान गंवाई है. जिसमें मुख्य रूप से 5 से 14 साल के बच्चे और 15 से 29 साल के युवा मौत के मुंह में समा गए.
रोड सेफ्टी एक्सपर्ट की माने तो हर साल देश में करीब तीन लाख बच्चों की मौत हो जाती है. इसके 2 बड़े कारण हैं, रोड इंजीनियरिंग डिजाइन का ना होना और इमरजेंसी केयर का सही से प्रावधान ना होना. वही नया मोटर व्हिकल अमेंडमेंट बिल राज्यसभा में अटका हुआ है. जिसमें पहली बार चाइल्ड सीट बेल्ट, एडल्ट अकाउंटबिलिटी, स्कूल ड्राइवर, वैन ड्राइवर या फिर पैरेंट की बच्चों की सुरक्षा को लेकर ट्रेनिंग पर ज्यादा ज़ोर दिया गया है.
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