'शिव' क्या है इसका अर्थ? हर किसी के लिए इसका अर्थ अलग-अलग हो सकता है लेकिन 'शिव' का शाब्दिक अर्थ है- 'जो नहीं है'. विघान ने भी इस बात को साबित किया है कि सृष्टि में मौजूद हर चीज शून्यता से शुरू होती है और शून्य पर ही ख़त्म होती है. शिव ही वो गर्भ हैं जिसमें से सब कुछ जन्म लेता है, और वे ही वो गुमनामी हैं, जिनमें सब कुछ फिर से समा जाता है. सब कुछ शिव से आता है, और फिर से शिव में चला जाता है.
शिव कौन हैं – पुरुष, मिथक या ईश्वर?
तो शिव को ‘अस्तित्वहीन’ बताया जाता है, एक अस्तित्व की तरह नहीं. उन्हें प्रकाश नहीं, अँधेरे की तरह बताया जाता है. प्रकाश देने वाली कोई भी चीज एक निश्चित समय के लिए प्रकाश का उत्सर्जन करती है लेकिन अन्धकार को किसी चीज की जरूरत नहीं. प्रकाश शाश्वत नहीं है इसकी एक सिमित सम्भावना है. इसकी शुरुआत भी है और अंत भी लेकिन अन्धकार के साथ ऐसा नहीं है. अन्धकार हमेशा बना रहता है. ये एकलौती ऐसी चीज है जो हर जगह बनी रहती है.
शिव का वर्णन हमेशा से त्रिअंबक के रूप में किया जाता है. यानी शिव की तीसरी आँख. आपकी दो आँखें इन्द्रियां है लेकिन शिव की तीसरी आँख इन्द्रियों के बहुत ऊपर है. दो आँखें जो सत्य नहीं देख पातीं तीसरी आँख से वो सत्य बच नहीं पाता. शिव को समझना उतना ही मुश्किल है जितना आकाशगंगा में मौजूद तारें गिनना और शिव को जानना उतना ही आसान है जितना सुगंध को सूंघ मोगरा के पौधे का पता लग जाना.