टंट्या भील के पास थी आलौकिक शक्तियां, कहलाते थे 'इंडियन रॉबिन हुड'

टंट्या भील के पास थी आलौकिक शक्तियां, कहलाते थे 'इंडियन रॉबिन हुड'
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भारतीय इतिहास में आप सभी ने एक से बढ़कर एक योद्धा के बारे में पढ़ा होगा, सुना होगा। जी हाँ, देश की ख़ातिर कई क्रांतिकारियों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिये। इसी सुची में शामिल रहे 'टंट्या भील'। अंग्रेज़ों से जंग लड़ने वाले एक क्रांतिकारी 'टंट्या भील' भी थे जिन्होंने भारत के लिए अपनी जान तक न्योछावर कर दी।

कौन थे टंट्या भील- कहा जाता हैं टंट्या भील का जन्म 1840 के क़रीब मध्य प्रदेश के खंडवा में हुआ था। उनका असली नाम 'टण्ड्रा भील' था। वह एक महान और ऐसे योद्धा थे जिनकी वीरता को देखते हुए अंग्रेज़ों ने उन्हें 'इंडियन रॉबिन हुड' का नाम दिया था। कहा जाता हैं देश की आजादी के जननायक और आदिवासियों के हीरो टंट्या भील की वीरता और अदम्य साहस से प्रभावित होकर तात्या टोपे ने उन्हें 'गुरिल्ला युद्ध' में पारंगत बनाया था। वह 'भील जनजाति' के एक ऐसे योद्धा थे, जो अंग्रेज़ों को लूटकर ग़रीबों की भूख खत्म करते थे। टंट्या वह क्रांतिकारी थे जिन्होंने ग़रीबों पर अंग्रेज़ों की शोषण नीति के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई थी। इसी के कारण वह ग़रीब आदिवासियों के लिए मसीहा बने। आज के समय में भी मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के कई आदिवासी घरों में टंट्या भील की पूजा की जाती है।

आप सभी को बता दें कि उन्हें उनके विद्रोही तेवर के चलते कम समय में बड़ी पहचान मिली थी। आपको बता दें कि आदिवासियों के विद्रोहों की शुरूआत प्लासी युद्ध (1757) के ठीक बाद ही शुरू हो गई थी और यह संघर्ष 20वीं सदी की शुरूआत तक चलता रहा। साल 1857 से लेकर साल 1889 तक टंट्या भील ने अंग्रेज़ों के नाक में दम कर रखा था। वह अपनी 'गुरिल्ला युद्ध नीति' के तहत अंग्रेज़ों पर हमला करके किसी परिंदे की तरह ओझल हो जाते थे। ऐसा भी कहा जाता था कि टंट्या भील को आलौकिक शक्तियां प्राप्त थीं।

 

वह इन्हीं शक्तियों के सहारे एक ही समय में 1700 गांवों में सभाएं करते थे। उनकी इन शक्तियों के कारण अंग्रेज़ों के 2000 सैनिक भी उन्हें पकड़ नहीं पाते थे। बहुत कम लोग जानते हैं कि उन्हें सभी तरह के जानवरों की भाषाएं भी आती थीं। हालाँकि एक बार वह अंग्रेज़ों की पकड़ में आ गए और 4 दिसम्बर 1889 को उन्हें फांसी दे दी गई। वहीं उन्हें फांसी देने के बाद अंग्रेज़ों ने 'टंट्या मामा' के शव को इंदौर के निकट खंडवा रेल मार्ग पर स्थित पातालपानी (कालापानी) रेलवे स्टेशन के पास ले जाकर फेंक दिया गया। इसी जगह को 'टंट्या मामा' की समाधि स्थल माना जाता है।

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