भगवान गौतम बुद्ध ने मित्र और अमित्र में अंतर बताते हुए कहा कि अमित्र वह होता है जो पराया धन हर्ता है, बातूनी होता है, खुशामदी और धन के नाश में चूर होता है। मित्र वाही होता है जो उपकारी हो, सुख-दुख में हमेशा एक सामान व्यवहार करता हो, हितवादी हो और अनुकम्पा करने वाला हो। इन बिन्दुओं के आधार पर मित्र और अमित्र की पहचान की जा सकती है-
* जो कार्य होने पर आंखों के सामने प्रिय बन जाता है, वह सच्चा मित्र नहीं होता है। लेकिन जो काम निकल जाने के बाद भी साथ नहीं छोड़ता वाही सही मित्र होता है।
इन चारों को मित्र के रूप में अमित्र मानना चाहिए :-
दूसरों का धन हरण करने वाला।
कोरी बातें बनाने वाला।
सदा मीठी-मीठी चाटुकारी करने वाला।
हानिकारक कामों में सहायता देने वाला।
वास्तविक मित्र इन चार प्रकार के होते है :-
सच्चा उपकारी।
सुख-दुख में समान साथ देने वाला।
अर्थप्राप्ति का उपाय बताने वाला।
सदा अनुकंपा करने वाला।
* दुनिया भ्रमण के बाद भी यदि कोई अपने अनुरूप सत्पुरुष न मिले तो दृढ़ता के साथ अकेले ही विचारें, मूढ़ के साथ मित्रता कभी नहीं निभाई जा सकती है।
* अकेले विचार करना मुर्ख मित्र रखने से अछा होता है।
* यदि कोई होशियार, सुमार्ग पर चलने वाला और धैर्यवान साथी मिल जाए तो सारी विघ्न-बाधाओं को झेलते हुए भी उसके साथ रहना चाहिए।
* पिता के कंधे पर जिस प्रकार कोई पुत्र निर्भय होकर सोता है, उसी प्रकार जिसके साथ विश्वासपूर्वक बातें की जा सके और दूसरे जिसकी मित्रता तोड़ न सकें, वही सच्चा मित्र कहलाता है।
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