नई दिल्ली: लोकसभा में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के दिए गए संबोधन को लेकर सदन में ही जबरदस्त हंगामा हुआ। वही इस दौरान स्मृति ईरानी कश्मीरी पंडितों की दास्तान सुनाने लगी, उन्होंने गिरिजा टिक्कू की तस्वीर दिखाई और कहा- 90 के दशक में एक महिला यूनिवर्सिटी में अपना चेक लेने जाते हैं। बस से घर लौटने का प्रयास करते हैं। 5 मर्द खींचकर ले जाते हैं, बलात्कार करते हैं और आरी से बदन काट देते हैं। जब गिरिजा टिक्कू के जीवन पर एक फिल्म में दिखाया गया तो कांग्रेस के कुछ प्रवक्ताओं ने उसे प्रपोगैंडा कहा। वही अब ऐसे में सवाल उठता है कि गिरिजा टिक्कू कौन थी।
वर्ष 1990 में कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम हुआ था और उन्हें उन्ही के जन्मभूमि से पलायन करने के लिए विवश किया गया था अब तक 5 लाख से भी ज्यादा पंडितों को उन्ही के घर से निकला जा चूका है कई लोगों का क़त्ल किया गया है तथा कई महिलाओं का बलात्कार किया गया है। ऐसी ही एक घटना वर्ष 1990 में भी हुई थी जिसे मीडिया तक में नहीं आने दिया गया था तथा शायद ही कई लोग इस घटना के बारे में जानते होंगे। यहाँ हम बात कर रहे है गिरिजा टिक्कू की, गिरिजा टिक्कू एक कश्मीरी पंडित विवाहित महिला थी जो बारामुला जिले में अरीगाम गाँव की निवासी थी वर्तमान में अरीगाम बांदीपोरा जिले में है। गिरिजा टिक्कू कश्मीर घाटी के एक सरकारी विद्यालय में लैब असिस्टेंट (लैब सहायिका) के तौर पर काम करती थी। वह 1990 के कश्मीर में हुए आतंकी दंगों के पश्चात् अपने परिवार के साथ कश्मीर क्षेत्र से भाग गयी थी और जम्मू में जाकर बस गयी थी। गिरिजा टिक्कू का हँसता- खेलता एक छोटा सा परिवार था। परिवार में उनकी 60 वर्ष की माँ ,उनके 26 वर्षीय पति, 4 साल का बेटा और 2 साल की एक बेटी थी।
वर्ष 1990 में एक दिन जब दंगा शांत हो गया तो गिरजा टिक्कू 11 जून को अपनी बची हुई सैलरी लेने के लिए कश्मीर रवाना हुयी थी सेलरी लेने के बाद वह जैसे ही अपने मुस्लिम सहकर्मी के घर के लिए जो की उसी गांव में थी रवाना हुयी उसी समय कुछ आतंकवादियों ने उनका अपहरण सभी गांव वालों के सामने कर लिया तथा कोई भी गांव वाला कुछ नहीं कर सका गिरिजा की आँखों में पट्टी बांधकर आतंकवादी उसे अनजान जगह पर ले गए तथा हैवानियत की सारी हदें पार की उसके साथ 4 दिनों तक सामूहिक बलात्कार किया गया तथा कई प्रकार से प्रताड़ित भी किया गया और जब इससे भी उन आतकवादियों का मन नहीं भरा तो उसे जिन्दा आरा मशीन से दो हिस्सों में काटा गया इतना ही नहीं उसके क्षत-विक्षत शरीर को निर्वस्त्र स्थिति में सड़क के किनारे फेंक दिया गया। गिरिजा को उसके हिन्दू और कश्मीरी पंडित होने के कारण इस बर्बरता का शिकार होना पड़ा। इस बर्बरता का एकमात्र उद्देश्य दहशतगर्दो द्वारा कश्मीरी पंडितों और हिन्दुओं को यह सन्देश देना था की कश्मीर में सिर्फ और सिर्फ मुसलमान या निज़ाम-ऐ-मुस्तफा को मानने वाले लोग ही रह सकेंगे अगर ऐसा न किया तो उनका नरसंहार या उनके पूरे परिवार को मार डाला जायेगा। आतंकवादियों के लिए हिन्दू काफिर थे उनके पास केवल 3 विकल्प रखे गए थे पहला- वे सभी स्थायी लोग इस्लाम अपना लें ,दूसरा विकल्प उनकी हत्या की जाएगी और तीसरा विकल्प था कश्मीर छोड़कर यहाँ से चले जाना।
1990 में जब यह नरसंहार हो रहा था तो गैर मुस्लिम लोगों के पास अपने जन्मभूमि से पलायन करने के अतिरिक्त कोई और विकल्प नहीं था। हिन्दुओं और कश्मीरी पंडितों के परिवार की महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया गया क्या बच्चे और क्या बूढ़े किसी को नहीं बक्शा गया। धर्म के ठेकेदार मौन थे किसी को उनकी पीड़ा नहीं दिखाई दी। गिरजा टिक्कू 20 वर्ष की थी जिसने प्रयोगशाला में लेब सहायक के रूप में कार्य किया था उनका किसी राजनीति से कोई संबंध नहीं था एक सामान्य परिवार से एक 20 वर्षीय लड़की जिसका बस इतना गुनाह था की वह एक हिन्दू थी उसे इतना प्रताड़ित किया गया जिसकी कोई सीमा नहीं थी पहले उसका अपहरण और फिर गैंगरेप और आखिर में उसके जिन्दा शरीर को दो हिस्सों में आरा मशीन से काटा गया सुनते ही रूह काँप उठती है ऐसी ही न जाने कितनी ही घटनाएं उस दौर में हिन्दुओं और कश्मीरी पंडितों के साथ घटित हुयी शायद ही आज के दौर में उन कश्मीरी पंडितों तथा हिन्दुओं के अतिरिक्त कोई समझ सकेगा। गिरिजा टिक्कू एक हिन्दू महिला थी जिसके साथ यह सब हुआ और न जाने कितनी ही घटनाएं उस दौर में हुई जो शायद हम में से किसी को ज्ञात ही नहीं क्यूंकि उन घटनाओं का न वर्णन किया गया न मीडिया द्वारा उसे हाईलाइट किया गया। अभी तक गिरिजा टिक्कू को न्याय नहीं मिल पाया है ऐसे ही न जाने कितने ही कश्मीरी पंडित तथा कश्मीर के हिन्दुओं को अभी तक न्याय नहीं मिला जिनका उन्हें 90 के दशक से इंतजार है।
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