पटना: स्वतंत्रता सेनानी बाबू कुंवर सिंह के विजयोत्सव पर 23 अप्रैल यानी आज गृहमंत्री अमित शाह बिहार के आरा के जगदीशपुर जा रहे हैं। इस के चलते लगभग 1 लाख राष्ट्रीय ध्वज लहराकर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने की तैयारी है। बता दें कि बाबू कुंवर सिंह का नाम बहुत अदब तथा सम्मान के साथ लिया जाता है। उन्होंने न केवल 1857 की क्रांति में अहम किरदार निभाया, बल्कि गुरिल्ला तकनीक का उपयोग कर अंग्रेजी सेना को बहुत नुकसान पहुंचाया था।
कौन थे बाबू कुंवर सिंह?
1857 के क्रांतिकारियों में से एक थे जगदीशपुर के जागीरदार बाबू कुंवर सिंह। वह बिहार के उज्जैनिया परमार क्षत्रिय तथा मालवा के लोकप्रिय राजा भोज के वंशज हैं। इसी वंश में महान चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य भी हुए थे। 80 वर्ष की आयु में बाबू कुंवर सिंह ने अंग्रेजों से लोहा लिया था। हाथ में गोली लगने के पश्चात् अपना हाथ खुद ही काट लिया था। समकालीन ब्रिटिश लेखक सर जॉर्ज ट्रेवेलयां ने कुंवर सिंह की वीरता तथा उनकी सेना की छापामार शैली से ब्रिटिश साम्राज्य के भयंकर हानि को अपने शब्दों में कुछ इस प्रकार बयान किया था। समकालीन ब्रिटिश अफसरों के अनुसार, कुंवर सिंह 6 फुट से ज्यादा लंबे, मृदुभाषी तथा अपने लोगों के बीच देवतुल्य व्यक्तित्व वाले शख्सियत थे। वीर कुंवर सिंह एक बेहतरीन घुड़सवार थे तथा शिकार करना उनका शौक था। 1857 की क्रांति में कुंवर सिंह, उनके भाई अमर सिंह तथा उनके सेनापति हरे कृष्णा सिंह ने गुरिल्ला तकनीक का उपयोग कर अंग्रेजी सेना को बहुत नुकसान पहुंचाया था।
BHU से पीएचडी होल्डर तथा प्रख्यात इतिहासकार डॉ। श्री भगवान सिंह बोलते हैं कि महाराणा प्रताप एवं छत्रपति शिवाजी के पश्चात् गुरिल्ला तकनीक का सबसे सटीक इस्तेमाल बाबू कुंवर सिंह ने ही किया था। उन्होंने आरा से निकलकर आजमगढ़, कानपुर तथा बलिया तक अंग्रेजी हुकूमत से छापामार युद्ध शैली के माध्यम से लोहा लिया था। इसीलिए आरा के इलाके को पूर्व का मेवाड़ बोला जाता है। इतिहासकार डॉ। श्री भगवान सिंह के अनुसार, विद्रोह का दमन करने के लिए अंग्रेजी सेना की सिख रेजीमेंट तथा स्कॉटिश हाई लैंडर भेजे गए, किन्तु बाबू कुंवर सिंह की सेना ने उन्हें धूल चटा दी थी। इसकी याद में झारखंड के रामगढ़ में मौजूद सिख रेजीमेंटल सेंटर के बाहर बाबू कुंवर सिंह की प्रतिमा लगाई गई है। इतिहासकार बोलते हैं कि 1857 के विद्रोह की तैयारी बाबू कुंवर सिंह ने बहुत पहले ही कर ली थी। इसके लिए जगदीशपुर में बारूद बनाने का कारखाना भी लगा रखा था। आरा वापस लौटते वक़्त वीर कुंवर सिंह को गंगा नदी पार करते वक़्त हाथ में गोली लग गई थी। उनकी कलाई में गंभीर चोट आई थी। ऐसे में शरीर में ज़हर फैल जाने का संकट भांपते हुए कुंवर सिंह ने अपनी ही तलवार से अपना हाथ काट दिया तथा गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया। तत्पश्चात, कुंवर सिंह की सेना ने अंग्रेजी सेना को परास्त कर आरा को हासिल कर लिया था। अत्यधिक खून बह जाने के कारण कुंवर सिंह की स्थिति बिगड़ गई। 2 दिन तक बेहोशी की स्थिति में रहने के बाद 26 अप्रैल 1858 को उन्होंने अंतिम बार अपनी आंखें खोलीं तथा गढ़ पर लगा झंडा देखा। ब्रिटिश यूनियन जैक के स्थान पर जगदीशपुर का झंडा लहराता देखने के बाद उन्होंने प्राण त्याग दिए। कुंवर सिंह की मृत्यु के बाद उनके भाई वीरवर अमर सिंह ने कमान संभाली तथा कई माहों तक लड़ते रहे। फिर नेपाल जाकर तराई के लोगों के बीच रहे। वहां से लड़ाई जारी रखी, किन्तु नेपाल के गोरखा राजा ने उन्हें धोखे से ब्रिटिश सेना को सौंप दिया। तत्पश्चात, जेल में उनकी मृत्यु हो गई। किन्तु उनकी लड़ाई तब तक जारी रही, जब तक कि ब्रिटिश हुकूमत ने सभी को माफी नहीं दे दी।
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