नई दिल्ली: मालदीव में पल-पल बदलते घटनाक्रम को लेकर भारत की 'चिंता' और इसी बीच मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद का भारत से 'सैन्य हस्तक्षेप' की गुहार लगाना. आखिर क्यों? नशीद को यह उम्मीद भारत से ही क्यों है? क्या आप जानते हैं भारत और मालदीव के संबंध क्यों इतने महत्वपूर्ण हैं. हम आपको बताने जा रहे हैं इस छोटे से देश की भारत के लिए अहमियत.
भारत और मालदीव के बीच एथनिक, भाषाई, सांस्कृतिक, धार्मिक और वाणिज्यिक संबंध काफी पुराने हैं, भारत 1972 में ही यहां अपने दूतावास की स्थापना कर चुका है. मालदीव में करीब 25,000 भारतीय रहते हैं, जो यहां रहने वाले विदेशी नागरिकों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या है. वहीं, शिक्षा, चिकित्सा, नए अवसरों और व्यवसाय के संबंध में मालदीव के लोगों की पहली पसंद भारत ही है. मालदीव दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) का सदस्य है, क्षेत्र में नेतृत्व की दृष्टि से भारत के लिए यह अहम है कि वह मालदीव को साथ लेकर चले.
मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद और उनकी मालदीव रिपब्लिक पार्टी, भारत समर्थक मानी जाती है और इस पार्टी का समर्थन करने वाली एक बड़ी आबादी भी चाहती है कि भारत मौजूदा अब्दुल्ला यामीन सरकार के खिलाफ कार्रवाई करे. गौरतलब है कि अब्दुल्ला यामीन सरकार चीन और पाकिस्तान को अपना दोस्त मानती है, ये दोनों ही देश भारत की शांति भंग करने का प्रयास करते रहते हैं.
मालदीव रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हिंद महासागर में स्थित एक द्वीप देश है, जहां करीब 1,200 कोरल द्वीप हैं, यह द्वीप उस रास्ते में हैं जहाँ से जहाजों के द्वारा भारत, चीन और जापान तक आवागमन होता है. आपको बता दें कि मालदीव की मौजूदा सरकार इस्लामिक कट्टरपंथ को बढ़ने के पक्ष में है, और यह भारत के लिए खतरनाक है कि, भारत के पड़ोस में कहीं भी इस्लामिक कट्टरपंथ को बढ़ावा मिले.
अगर भारत सैन्य हस्तक्षेप करते हुए मालदीव में तख्तापलट करने के लिए मोहम्मद नशीद की मदद करता है तो यह छोटा सा देश भारत के लिए बहुत मायनों में मददगार साबित होगा. इससे पहले भी 1988 में मालदीव के तत्कालीन अब्दुल गयूम सरकार के खिलाफ, अब्दुल्ला लुतुफी की अगुवाई में तख्तापलट की कोशिशों को विफल करने के लिए उस समय भारत में राजीव गांधी की सरकार ने 'Operation Cactus' के तहत भारतीय सैनिकों और नौसेना के जरिये मालदीव की सहायता की थी.
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