नई दिल्ली: आज देश संविधान दिवस मना रहा है। बाबा साहेब अंबेडकर द्वारा बनाए गए संविधान को हर भारतवासी बेहद सम्मान और आदर के साथ देखता है और गर्व महसूस करता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बाबासाहेब खुद ही उस संविधान को जला डालना चाहते थे? संभवतः उन्हें पहले ही यह आभास हो गया था कि देश की पांच फ़ीसदी से भी कम आबादी वाला संभ्रांत तबका संविधान की आड़ लेकर, देश के लोकतंत्र को भी को हाईजैक कर लेगा और 95 फ़ीसदी तबके को उसका फायदा नहीं मिलेगा।
दरअसल, आज़ादी के बाद ही देश में जिस तरह सियासी परिवार पैदा हुए और पूरी सत्ता उन्हें के आसपास घूमने लगी। संविधान की आड़ लेकर, कैसे वो लोग केवल अपने हितों की पूर्ति कर रहे हैं और सिर्फ उनके परिवार या उनसे ताल्लुक रखने वाले ही लाभ ले रहे हैं, उससे स्पष्ट लगता है, डॉ अंबेडकर की आशंका बिल्कुल ग़लत नहीं थी। बाबा साहेब अंबेडकर ने दो सितंबर 1953 को संसद के उच्च सदन में चर्चा के दौरान कहा था कि, 'श्रीमान, मेरे मित्र कहते हैं कि मैंने संविधान बनाया है। लेकिन मैं यह कहने के लिए पूरी तरह तैयार हूं कि इस संविधान को जलाने वाला मैं पहला व्यक्ति होऊंगा। मुझे इसकी आवश्यकता नहीं है। यह किसी के लिए अच्छा नहीं है।'
इस घटना के दो वर्ष बाद, 19 मार्च 1955 को पंजाब से राज्यसभा सांसद डॉ अनूप सिंह ने सदन में बहस के दौरान डॉ अंबेडकर के स्मरण कराते हुए कहा था, 'पिछली बार आपने संविधान जलाने की बात कही थी।' इस पर डॉ अंबेडकर ने जवाब देते हुए कहा कि, 'मेरे मित्र अनूपजी ने कहा कि मैंने कहा था कि मैं संविधान को जला देना चाहता हूं। पिछली बार मैं जल्दी में इसकी वजह नहीं बता सका था। लेकिन अब अवसर मिला है तो बताता हूं। हमने भगवान के रहने के लिए संविधान रूपी मंदिर बनाया है, लेकिन भगवान उसमे आकर रहते, उससे पहले ही राक्षस आकर उसमें रहने लगा है। ऐसे में मंदिर को तोड़ देने के अलावा रास्ता ही क्या है?'
बाबा साहेब ने कहा था कि, 'हमने इसे असुरों के लिए नहीं, बल्कि देवताओं के लिए बनाया है। मैं नहीं चाहता कि संविधान के इस मंदिर पर असुरों का आधिपत्य हो जाए। हम चाहते हैं इस पर देवों का अधिकार हो। यही वजह है कि मैंने कहा था कि मैं संविधान को जलाना पसंद करूंगा।' इस पर एक अन्य सांसद वीकेपी सिन्हा ने कहा कि, 'आप मंदिर ध्वस्त करने की बात क्यों करते हैं, आप असुरों को क्यों नहीं बाहर निकाल देते ?' इस पर शतपथ से देवासुर संग्राम की घटना का उल्लेख करते हुए बाबासाहेब ने कहा कि, 'आप ऐसा नहीं कर सकते। हम में अभी तक वह शक्ति नहीं आई है कि असुरों को भगा सकें।' अब बाबा साहेब किसकी बात कर रहे थे, या उनका इशारा किस तरफ था, ये बात वे ही सबसे अच्छी तरह जानते थे। लेकिन, एक बात तो सत्य है कि संविधान की आड़ लेकर कई गलत काम भी हो रहे हैं, कई अपराधी भी छूट रहे हैं, शायद बाबा साहेब का इशारा इसी ओर हो ।
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