योगी मॉडल पर क्यों चल पड़ी कांग्रेस! क्या हिन्दू वोटों को लुभाने की कोशिश ?

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शिमला: हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार इन दिनों भाजपा के मुद्दों को अपने में समाहित करने की कोशिशों में लगी हुई है। हाल ही में सुक्खु सरकार के मंत्री ने संजौली मस्जिद के विवाद पर विधानसभा में जो बयान दिया, वह भाजपा के नेताओं के शब्दों की नकल करता हुआ प्रतीत हुआ। यह घटनाक्रम अभी बीते एक महीने का भी नहीं है, कि हिमाचल सरकार ने एक बार फिर उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार की नीतियों की ओर कदम बढ़ाने का निर्णय लिया है।

हिमाचल सरकार ने बुधवार को वेंडरों को नेम प्लेट डिस्प्ले करने का आदेश जारी किया, जो योगी सरकार के एक फैसले के समान है। यह कदम उठाकर हिमाचल सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि वह कांग्रेस हाईकमान से संबंधित मुद्दों की परवाह नहीं कर रही है। आश्चर्य की बात यह है कि कांवड़ यात्रा के दौरान सहारनपुर में इसी तरह के फैसले का विरोध करने वाले कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी अब अपनी पार्टी की सरकार के इस फैसले पर चुप्पी साधे हुए हैं। क्या यह माना जाए कि हिमाचल में हो रहे घटनाक्रमों पर गांधी परिवार की मौन सहमति है? यह सवाल उठना स्वाभाविक है। हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार लगातार ऐसे कदम उठा रही है जो भाजपा के एजेंडे में शामिल रहे हैं। संजौली मस्जिद विवाद पर कांग्रेस की खामोशी ने पार्टी कार्यकर्ताओं में निराशा पैदा की है। यह ताजा मसला कांग्रेस कार्यकर्ताओं और संगठन के लिए काफी चौंकाने वाला साबित हुआ है।

मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने पहले कहा था कि खाद्य आपूर्ति विभाग द्वारा स्ट्रीट वेंडरों की स्वच्छता और गुणवत्ता की जांच की जाएगी। फिर लोक निर्माण मंत्री ने कहा कि राज्य में प्रवासियों की बढ़ती संख्या के कारण स्थानीय लोगों ने चिंता व्यक्त की है। इसी के मद्देनजर स्ट्रीट वेंडरों के लिए पहचान पत्र दिखाना अनिवार्य करने का निर्णय लिया गया है। हालांकि यह सब अचानक नहीं हुआ है। संजौली मस्जिद का मामला राष्ट्रीय स्तर पर उठने के बावजूद कांग्रेस के बड़े नेताओं की चुप्पी हैरान करने वाली है। राहुल और प्रियंका गांधी ने इस मुद्दे पर न तो कोई ट्वीट किया और न ही मुस्लिमों की स्थिति जानने हिमाचल पहुंचने का प्रयास किया। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि राज्य सरकार को हिंदुत्व के एजेंडे पर चलने की खुली छूट मिल गई है।

हाल ही में हिमाचल में हुए घटनाक्रमों से यह स्पष्ट होता है कि कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व के रास्ते पर चल रही है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खु का सॉफ्ट हिंदुत्व का एजेंडा राम मंदिर के उद्घाटन के समय सामने आया था। उस दिन प्रदेश में छुट्टी की घोषणा की गई थी और विशेष पूजा पाठ का आयोजन भी करवाया गया था। उन्होंने आम लोगों से अपील की थी कि वे राम मंदिर के उद्घाटन के दिन अपने घरों में दीपक जलाएं। हालांकि राज्य में मुसलमानों की जनसंख्या लगभग 2-3 प्रतिशत है, लेकिन प्रदेश में हिंदू-मुसलमान के मुद्दों में बढ़ोतरी ने यह दर्शाया है कि कांग्रेस दूरगामी रणनीति के तहत काम कर रही है। अक्सर कांग्रेस को खुलकर मुस्लिमों का पक्ष लेते हुए देखा गया है, लेकिन राज्य में ये समुदाय उतना बड़ा वोटबैंक नहीं है। संभवतः कांग्रेस इसलिए फूंक-फूंककर कदम रख रही है, वो राज्य के हिन्दुओं को नाराज़ नहीं कर सकती। हाल के कुछ घटनाक्रम ऐसे हैं, जो यही संकेत देते हैं। शिमला में संजौली मस्जिद का विवाद सामने आया था और अब अवैध मस्जिदों का मामला भी बढ़ता जा रहा है। इस मुद्दे से जुड़ी घटनाओं ने स्थानीय नेताओं की प्रतिक्रिया को मजबूर कर दिया है।

कांग्रेस में कुछ लोग मानते हैं कि पार्टी में हिंदुत्व के नाम पर जो कुछ हो रहा है, उसके पीछे पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह हैं, जो सुक्खु सरकार में महत्वपूर्ण मंत्रालय संभाल रहे हैं। उन्होंने पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर राम मंदिर उद्घाटन में भाग लेने की घोषणा की थी, जबकि राहुल गांधी को अयोध्या (फ़ैजाबाद) में सपा को मिली जीत को राम मंदिर आंदोलन की हार बताते रहे हैं। खुद राहुल न्योता मिलने के बावजूद राम मंदिर नहीं गए। वैसे, राम मंदिर के प्रति गांधी-नेहरू परिवार की अनदेखी इतनी गहरी है कि नेहरू से लेकर, इंदिरा-राजीव और सोनिया-राहुल तक यहाँ कोई नहीं आया है। जबकि, इसी परिवार के लोग काबुल में बाबर की कब्र पर जाकर सर झुका चुके हैं, जिसमे राहुल गांधी भी शामिल हैं। इससे एक बात तो स्पष्ट है कि, कांग्रेस सार्वजनिक रूप से राम मंदिर का समर्थन कर मुस्लिम वोट बैंक को नाराज़ नहीं कर सकती। वो तो सुप्रीम कोर्ट में राम को काल्पनिक भी बता चुकी है, ऐसे में विक्रमादित्य का राम मंदिर जाना पार्टी लाइन के खिलाफ ही है। लेकिन, अगर यह बात सही भी है, तो कांग्रेस पार्टी उन्हें मंत्रिमंडल में क्यों बनाए रखेगी? दरअसल, विक्रमादित्य सिंह और उनकी माँ प्रतिभा सिंह का हिमाचल में बड़ा जनाधार है, उन्हें मंत्री बनाए रखना कांग्रेस की मजबूरी भी हो सकती है। 

स्ट्रीट वेंडर्स के बारे में जो फैसला लिया गया है, वह किसी एक दिन में नहीं लिया गया। हिमाचल विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने स्ट्रीट वेंडर्स के लिए नीति तैयार करने के लिए उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। यह समिति हाल ही में बनी थी और उसने बुधवार को यह निर्णय लिया। इस प्रकार, हिमाचल प्रदेश में जो कुछ हो रहा है, वह केवल संजौली मस्जिद विवाद तक सीमित नहीं है। मंडी जिले में दशकों पुरानी मस्जिद को लेकर भी तनाव बढ़ रहा है। कुसुम्पटी में मस्जिद और नमाज को लेकर विवाद खड़ा हो गया है, और रामपुर, सुन्नी और कुल्लू जिला मुख्यालय में भी ऐसी घटनाओं की खबरें आ रही हैं।

हालांकि विक्रमादित्य सिंह ने वक्फ बोर्ड के सुधार की जरूरत पर अपने विचार व्यक्त किए हैं, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि कांग्रेस पार्टी में हिंदुत्व की दिशा में हो रही गतिविधियों को लेकर चिंता का विषय है। इससे साफ है कि कांग्रेस पार्टी की टॉप लीडरशिप की मौन सहमति ही इस सब में शामिल है। इस तरह, हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकार के द्वारा उठाए जा रहे कदम न केवल भाजपा के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं, बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि पार्टी को अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। ऐसे में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या कांग्रेस इस दिशा में आगे बढ़ने की कोशिशों को जारी रखेगी या फिर अपने पुराने सिद्धांतों की ओर लौटेगी।

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