राहुल गांधी को अमेरिका से बार-बार क्यों आता है बुलावा, बाइडेन-सोरोस की दोस्ती से खुला भारत-विरोधी राज़?

राहुल गांधी को अमेरिका से बार-बार क्यों आता है बुलावा, बाइडेन-सोरोस की दोस्ती से खुला भारत-विरोधी राज़?
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वाशिंगटन: अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने हाल ही में विवादित खरबपति कारोबारी जॉर्ज सोरोस को अमेरिका के सर्वोच्च नागरिक सम्मान प्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ फ्रीडम से नवाजा। यह सम्मान वैसे तो अमेरिका में एक प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान माना जाता है, लेकिन इस बार इसे लेकर गंभीर विवाद खड़ा हो गया है। बाइडेन का यह फैसला उनके कार्यकाल के अंतिम दिनों में किया गया है, जब उन्होंने अपने बेटे हंटर बाइडेन समेत कई कैदियों को माफी दी और 19 अन्य लोगों को सम्मानित किया।  

जॉर्ज सोरोस, जो "ओपन सोसायटी फाउंडेशन" नामक संस्था के संस्थापक हैं, अपनी नकारात्मक भूमिकाओं के लिए कुख्यात हैं। उन पर कई देशों में सरकारें गिराने, आर्थिक अस्थिरता फैलाने और प्रदर्शनों को भड़काने जैसे गंभीर आरोप लग चुके हैं। भारत में भी सोरोस की भूमिका पर लंबे समय से सवाल उठते रहे हैं। उन्होंने खुद 2023 में म्यूनिख रक्षा सम्मेलन में बयान दिया था कि "भारत एक लोकतांत्रिक देश है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकतांत्रिक नहीं हैं।" उन्होंने भारत से मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने और देश से राष्ट्रवाद ख़त्म करने के लिए भारी पैसा देने का भी ऐलान किया था। इसके बाद से भारत के संदर्भ में उनकी गतिविधियों पर गहरी नजर रखी जा रही है।  

सोरोस को सम्मानित करने के फैसले से खुद अमेरिका के दिग्गज भी नाराज़ हैं, दुनिया के सबसे रईस इंसान एलन मस्क ने इस घटना को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा, "यह हास्यास्पद है कि बाइडेन जॉर्ज सोरोस को यह सम्मान दे रहे हैं। मेरी राय में, सोरोस मूल रूप से मानवता से नफरत करते हैं।" मस्क ने यह भी आरोप लगाया कि "सोरोस ऐसी चीजें कर रहे हैं, जो सभ्यता के ताने-बाने को नष्ट कर रही हैं।"

मस्क की यह प्रतिक्रिया उन दावों को और बल देती है कि सोरोस की गतिविधियां सिर्फ परोपकार तक सीमित नहीं हैं। उनकी संस्थाओं पर कई बार देशों में सरकारें गिराने, अर्थव्यवस्थाओं को अस्थिर करने और बड़े आंदोलन भड़काने के आरोप लगे हैं।

इस सम्मान के बाद यह चर्चा जोरों पर है कि जॉर्ज सोरोस का भारत विरोधी एजेंडा क्या सिर्फ उनके निजी विचार हैं, या इसके पीछे एक संगठित साजिश काम कर रही है। सोरोस ने पहले भी भारत में सत्ता परिवर्तन की बात खुलेआम कही थी। उन्होंने मोदी सरकार को हटाने के लिए बड़े फंड की घोषणा की थी। राहुल गांधी के विदेश दौरे और विवादित बयानों ने इस बहस को और हवा दी है। हाल ही में राहुल गांधी को अमेरिका से कई बार बुलावा भेजा गया, जहां उन्होंने भारत के लोकतंत्र और सरकार की आलोचना की। सवाल यह है कि क्या यह विदेशी मंच पर भारत को बदनाम करने की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है? राहुल ने इन दौरों के दौरान विवादित अमेरिकी अधिकारी डोनाल्ड लू और कई अन्य विदेशी नेताओं से भी मुलाकात की थी। डोनाल्ड लू वही हैं, जिन पर पाकिस्तान और बांग्लादेश की सरकारें गिराने के आरोप लग चुके हैं। इसके अलावा राहुल, जॉर्ज सोरोस के नुमाइंदों के साथ भी विदेशों में बैठकें कर चुके हैं, जो अपने आप में बेहद विवादित है, क्योंकि सोरोस का लक्ष्य दुनिया से राष्ट्रवाद को ख़त्म करना है। ऐसे में राहुल गांधी का उनसे मिलने का क्या मतलब हो सकता है? 

भारत में किसान आंदोलन, मणिपुर हिंसा, और CAA विरोधी प्रदर्शनों के दौरान विदेशी फंडिंग और हस्तक्षेप की खबरें लगातार आती रहीं। ये घटनाएं किसी एक साजिश का हिस्सा लगती हैं, जिसका उद्देश्य भारत में अस्थिरता फैलाना है। बाइडेन प्रशासन द्वारा जारी कई रिपोर्ट्स में भारत पर मानवाधिकार उल्लंघन और मुसलमानों पर अत्याचार के आरोप लगाए गए। यह वही आरोप हैं, जो जॉर्ज सोरोस और राहुल गांधी के बयानों में भी बार-बार दोहराए गए।  

सोरोस के सम्मान के बाद बाइडेन प्रशासन पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। अमेरिकी खरबपति एलन मस्क ने इस सम्मान को "सभ्यता के ताने-बाने को नष्ट करने" का प्रतीक बताया। रिपब्लिकन नेताओं ने भी बाइडेन पर तीखा हमला बोला और इसे अमेरिका की छवि पर धब्बा करार दिया। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि जिस तरह अमेरिका ने पाकिस्तान और बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के लिए साजिशें रचीं, वैसा ही कुछ भारत में भी हो सकता है। क्या राहुल गांधी को मोहरा बनाकर भारत में विदेशी ताकतें सरकार गिराने की कोशिश कर रही हैं? सवाल यह भी है कि राहुल गांधी, सोरोस और बाइडेन के इस गठजोड़ का भारत के भविष्य पर क्या असर पड़ेगा। हालाँकि, बाइडेन की तो विदाई होने वाली है, लेकिन फिर भी सोरोस के दम पर अमेरिका में मौजूद एक बड़ा इकोसिस्टम भारत के खिलाफ साजिशें जारी रख सकता है और राहुल गांधी के साथ उनके संबंध पहले भी सामने आ चुके हैं।  

ऐसे में यह समय भारत के लिए सतर्क रहने का है। विदेशी ताकतों और उनके एजेंडे को पहचानकर देश के लोकतंत्र और स्थिरता की रक्षा करना आवश्यक है। यह साफ है कि जॉर्ज सोरोस और बाइडेन का यह गठजोड़ भारत के खिलाफ एक गंभीर चुनौती पेश कर सकता है। देशवासियों को सतर्क रहना होगा और इन साजिशों का हर स्तर पर मुकाबला करना होगा।  

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