भारतीय संस्कृति और हिन्दू धर्म में गणेश जी का सबसे पहले पूजन किया जाता है. जब शिव जी ने सभी देवताओं को पूरे ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाने के लिए कहा था, उस समय गणेश जी ने माता पार्वती और भगवान शिव की 7 बार परिक्रमा लगाकर अपनी बुद्धिमता का परिचय दिया और सभी देवताओं के समक्ष फिर शिव जी ने गणेश जी को प्रथम पूजनीय देवता घोषित किया. लेकिन एक समय ऐसा भी आया जब क्रोधित होकर शिव जी ने गणेश जी का सिर धड़ से अलग कर दिया था.
दरअसल, माता पार्वती ने एक बार स्नान के लिए जाने से पूर्व अपने उबटन से एक प्रतिमा बनाई और फिर उसमें माता ने प्राण डाल दिए. इस तरह एक बालक का जन्म हुआ. माता ने बालक से कहा कि मैं तुम्हारी माता हूँ और तुम्हें केवल मेरी ही आज्ञा मानना होगी. माता ने आगे कहा कि मैं स्नान हेतु जा रही हूं और किसी को भी तुम्हें भीतर आने की अनुमति नहीं देनी है. हालांकि उसी पल शिव जी आते हैं और बालक शिव जी को रोकने लगता है, तब शिव जी अपने त्रिशूल से क्रोधित अवस्था में बालक का सिर धड़ से अलग कर देते हैं. सारे जग में हाहाकार मचने के बाद विष्णु जी हाथी का सिर लाते हैं और शिव जी हाथी का सिर लगाकर बालक को पुनः जीवित कर देते हैं. लेकिन प्रश्न यह उठता है कि आख़िर हाथी का सिर क्यों ?
हाथी का सिर लगाने के पीछे बात कुछ इस तरह है कि हाथी को ‘ज्ञान शक्ति’ और ‘कर्म शक्ति’, दोनों ही प्रतीक के रुप में देखा जाता है. गजराज में बुद्धि और सरलता ये प्रमुख गुण पाए जाते हैं. गजराज का बड़ा सा शरीर उसकी बुद्धि और ज्ञान का सूचक होता है. आपने देखा होगा कि हाथी कभी भी अवरोध से बचकर नहीं निकलते हैं, बल्कि वे रास्ते में आए अवरोध को हटा देते हैं. अब आप यह जान चुके होंगे कि आख़िर क्यों गणेश जी की धड़ में गजराज का सिर लगाया गया.
आखिर क्यों शिव जी ने धड़ से अलग कर दिया था गणेश जी का सिर ?
क्यों सबसे पहले की जाती हैं गणेश जी की पूजा ?
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