प्रभु श्री विष्णु को प्रसन्न एवं उनकी विशेष कृपा पाने के लिए एकादशी तिथि बेहद शुभ होती है। इस दिन उपवास रखने से जीवन की सभी परेशानियों का निवारण होने लगता है। हर माह में आने वाली एकादशी तिथि प्रभु श्री विष्णु को समर्पित है। इस दिन विधि अनुसार पूजा करने से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती हैं तथा घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। ज्येष्ठ माह में आने वाली निर्जला एकादशी को बहुत विशेष माना जाता है। इस साल निर्जला एकादशी 18 जून 2024 को है।
महाबली भीम ने किया यह व्रत
द्वापर युग में महर्षि व्यासजी ने पांडवों को निर्जला एकादशी के अहमियत को समझाते हुए उनको यह व्रत करने की सलाह दी। जब वेदव्यास जी ने धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष देने वाली एकादशी व्रत का संकल्प कराया तो कुंती पुत्र भीम ने पूछा-'हे देव! मेरे उदर में तो वृक नामक अग्नि है,उसे शांत रखने के लिए मुझे दिन में कई बार और बहुत ज्यादा भोजन करना पड़ता है। तो क्या में अपनी इस भूख के कारण पवित्र एकादशी व्रत से वंचित रह जाऊँगा?''।तब व्यास जी ने कहा-''हे कुन्तीनन्दन! धर्म की यही विशेषता है कि वह सबको धारण ही नहीं करता वरन सबके योग्य साधन व्रत-नियमों की सहज तथा लचीली व्यवस्था भी करता है। तुम सिर्फ ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी का व्रत करो। मात्र इसी के करने से तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों का फल भी प्राप्त होगा तथा तुम इस लोक में सुख-यश प्राप्त कर वैकुण्ठ धाम को प्राप्त करोगे''। तभी से साल भर की चौबीस एकादशियों का पुण्य लाभ देने वाली इस श्रेष्ठ निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी या पांडव एकादशी नाम दिया गया है। इस दिन जो मनुष्य स्वयं निर्जल रहकर "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" का जप करता है वह जन्म जन्मांतर के पापों से मुक्त होकर श्री हरि के धाम जाता है।
नारदजी को मिली निश्छल भक्ति का वरदान
शास्त्रों के मुताबिक, श्री श्वेतवाराह कल्प के प्रारंभ में देवर्षि नारद की विष्णु भक्ति देखकर ब्रह्मा जी बहुत प्रसन्न हुए। नारद जी ने अपने पिता व सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी से कहा कि हे परमपिता! मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे मैं जगत के पालनकर्ता श्रीविष्णु भगवान के चरण कमलों में स्थान पा सकूं। पुत्र नारद का नारायण प्रेम देखकर ब्रह्मा जी ने श्रीविष्णु की प्रिय निर्जला एकादशी व्रत करने का सुझाव दिया। नारद जी ने प्रसन्नचित्त होकर पूर्ण निष्ठा से एक हजार वर्ष तक निर्जल रहकर यह कठोर व्रत किया। हजार साल तक निर्जल व्रत करने पर उन्हें चारों ओर नारायण ही नारायण नजर आने लगे। परमेश्वर श्रीनारायण की इस माया से वे भ्रमित हो गए,उन्हें लगा कि कहीं यही तो विष्णु लोक नहीं। तभी उनको प्रभु श्री विष्णु के साक्षात दर्शन हुए,मुनि नारद की भक्ति से प्रसन्न होकर विष्णुजी ने उन्हें अपनी निश्छल भक्ति का वरदान देते हुए अपने श्रेष्ठ भक्तों में स्थान दिया तथा तभी से निर्जल व्रत की शुरुआत हुई।
आप नहीं जानते होंगे हज यात्रा से जुड़ी ये जरुरी बातें
आज इन शुभ योगों में मनाया जाएगा गंगा दशहरा, डुबकी लगाते समय इन बातों का रखें ध्यान