भारतीय संस्कृति या हिंदू धर्म के हर त्यौहार का अपना-अपना एक अलग महत्व है. हमारे हर त्यौहार में यह संदेश छिपा हुआ होता है कि मानव जीवन को किस तरह से हम बेहतर और समृद्ध बना सकते हैं. ऐसा ही एक त्यौहार है विजयादशमी या दशहरा का त्यौहार. रावण दहन के बाद कई स्थानों पर शमी के पत्ते सोने के स्वरुप की भांति एक-दूसरे को दिए जाते हैं. जबकि कई जगह पर शमी के पेड़ को पूजा जाता है. हालांकि सवाल यह उठता है कि ऐसा क्यों होता है ? तो आइए जानते हैं इसके बारे में...
'शमी गर्भ' के नाम से संस्कृत साहित्य में अग्नि का उल्लेख मिलता है. मान्यता है कि महाभारत के युद्ध के दौरान पांडवों ने इसी वृक्ष के ऊपर अपने हथियार छिपाए थे और बाद में परिणाम पूरी दुनिया ने देखा. पांडवों को कौरवों पर विजय प्राप्त हुई. शमी के पेड़ या उसके पत्ते आसानी से नहीं मिलते हैं. गुजरात के कच्छ जिले, भुज शहर में लगभग साढ़े चार सौ साल पुराना एक शमी का वृक्ष मौजूद है. महान राजा विक्रमादित्य के काल के दौरान सुप्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर द्वारा भी अपने 'बृहतसंहिता'नामक ग्रंथ के 'कुसुमलता' अध्याय में भी इस वृक्ष का उल्लेख किया गया है. इसे 'खिजड़े' या खिजड़ा के नाम से भी जाना जाता है.
दशहरा के दिन शमी के पूजन का मतलब...
विजयादशमी या दशहरा के दिन इस पेड़ की पूजा करने का मतलब यह भी है कि यह वृक्ष आने वाली कृषि विपदा के बारे में पहले से ही किसानों को सूचित कर देता है. इसका परिणाम यह होता है कि किसान इसके लिए पहले से ही तैयार होते हैं. गर्मी के मौसम में इस वृक्ष का बहुत अधिक विकास होता है. वहीं ऐसी भी मान्यता है कि जिस खेत में शमी वृक्ष को बोया जाता है, वहां की जमीन को इससे कई तरह के लाभ होते हैं. अतः यहीं कारण है कि शमी के पेड़ के साथ ही हिंदू धर्म बरगद, पीपल, तुलसी, केला, आम और बिल्व पत्र आदि को भी पूजनीय मानता है.
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