नई दिल्ली: आज देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की 138वीं जयंती मनाई जा रही है। संविधान निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले राजेंद्र बाबू का जन्म 3 दिसंबर 1884 को हुआ था, वे बचपन से ही पढ़ने लिखने में बेहद होनहार थे। हालांकि, उनके वंशजों का कहना है कि, राजेंद्र प्रसाद ने संविधान की रुपरेखा तैयार की फिर भी सरकारों द्वारा उन्हें वो सम्मान नहीं दिया गया, जिसके वो हकदार थे।
बिहार की पावन भूमि में जन्में राजेंद्र बाबू ने अपनी आत्मकथा में खुद इस बात का खुलासा किया है कि, आखिर कैसे उन्हें राष्ट्र की सेवा करने का विचार आया। राजेंद्र बाबू के मुताबिक, गोपाल कृष्ण गोखले से मुलाकात करने के बाद वो स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए बेचैन हो गए। किन्तु, पारिवारिक जिम्मेदारियों ने उन्हें जकड़ रखा था। बहुत सोचने के बाद राजेंद्र बाबू ने अपने बड़े भाई महेंद्र प्रसाद और पत्नी राजवंशी देवी को भोजपुरी में एक खत लिखा और देश सेवा करने की इजाजत मांगी। राजेंद्र बाबू का ये खत पढ़कर बड़े भाई महेंद्र रो पड़े और सोचने लगे की छोटे भाई को क्या उत्तर दूं। अंत में सहमति मिलने के बाद डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े।
डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की पोती तारा सिन्हा का कहना है कि, राजेंद्र प्रसाद ने संविधान की रुपरेखा तैयार की। संविधान निर्माण में अहम भूमिका अदा की। फिर भी उन्हें वो सम्मान नहीं दिया गया, जिसके वो हकदार थे और आज भी इस बात पर कोई चर्चा नहीं होती है। सेवानिवृत्त होने के बाद राजेंद्र बाबू ने अपना अंतिम समय पटना के सदाक़त आश्रम में बिताया और 28 फरवरी, 1963 को इस वे इस संसार को छोड़ गए। बता दें कि जिस सभा ने सविंधान का निर्माण किया था, राजेंद्र बाबू उसके स्थायी अध्यक्ष थे और इसके निर्माण में जितना योगदान बाबा साहेब आंबेडकर का था, उतना ही राजेंद्र प्रसाद का भी था, लेकिन इस बारे में कभी चर्चा नहीं की जाती।
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