मुंबई: बॉम्बे हाई कोर्ट ने आज सोमवार (22 जुलाई) को पुलिस और नगर निगम अधिकारियों को अवैध फेरीवालों की समस्या का समाधान न निकाल पाने के लिए कड़ी फटकार लगाई । इसके साथ ही पूछा कि क्या विक्रेताओं को मंत्रालय या राज्यपाल के घर के बाहर स्टॉल लगाने की अनुमति दी जाएगी। वहीं, दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमे सरकारों ने दुकानदारों को अपनी दूकान पर अपना नाम लिखने को कहा था, पुलिसकर्मी इसका पालन भी करवा रहे थे। सरकार का कहना था कि, ये ग्राहक का हक़ कि उसे पता रहना चाहिए कि वो कहाँ से क्या खरीद रहा है, इससे पारदर्शिता आएगी, हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट नहीं मानी। इधर बॉम्बे हाई कोर्ट ने अवैध दुकानदारों पर कार्रवाई ना करने को लेकर पुलिस को फटकार लगाई है।
जस्टिस एमएस सोनका और कमल खता की खंडपीठ ने कहा कि अगर अवैध फेरीवालों और विक्रेताओं की समस्या बार-बार आती रहती है, तो इसका स्थायी समाधान जरूरी है और अधिकारी असहाय होने का दावा नहीं कर सकते। हाई कोर्ट ने कहा कि इस पर रोक लगनी चाहिए और यह लगातार दोहराया नहीं जा सकता। कोर्ट ने अफसोस जताया कि नगर निकाय और पुलिस अधिकारी अवैध और अनाधिकृत फेरीवालों और विक्रेताओं के खिलाफ नागरिकों की शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि, "आप (अधिकारी) चाहते हैं कि नागरिक हर दिन अदालत में आएं और बैठें? यह लोगों का सरासर उत्पीड़न है। यह पूरी तरह से अराजकता है। निगम नागरिकों की शिकायतों पर गौर नहीं करता है और पुलिस भी नहीं करती है। एक आम आदमी को क्या करना चाहिए?"
हाई कोर्ट ने कहा कि, "जो लोग कानून का पालन करना चाहते हैं, उन्हें परेशानी उठानी पड़ती है। पूरा सरकारी तंत्र ध्वस्त हो गया है। ये अनाधिकृत फेरीवाले बेधड़क आते हैं। इसे मंत्रालय या राज्यपाल के घर के सामने होने दीजिए, फिर देखिए कि यह सब कैसे रुकता है। आपके पास वहां पूरी सुरक्षा है।" बता दें कि, गत वर्ष उच्च न्यायालय ने शहर में अवैध एवं अनाधिकृत फेरीवालों और विक्रेताओं के मुद्दे पर स्वतः संज्ञान लिया था। जून 2024 में, अदालत ने बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) और पुलिस को अवैध फेरीवालों के खिलाफ उनकी कार्रवाई और समस्या को रोकने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में विस्तृत हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया था।
सोमवार को पुलिस की ओर से पेश हुए बीएमसी के वकील अनिल सिंह और सरकारी वकील पूर्णिमा कंथारिया ने हलफनामा दाखिल करने के लिए और मोहलत देने की मांग की। इससे खफा होकर पीठ ने कहा कि यह एक गंभीर मामला है और यदि अधिकारी अदालत के आदेशों का पालन नहीं कर सकते तो अदालत को बंद कर देना चाहिए। अदालत ने कहा, "रात 12 बजे तक काम करें और एक सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करें।" साथ ही मामले की अगली सुनवाई 30 जुलाई को तय की।
पीठ ने व्यंग्यात्मक लहजे में यह भी पूछा कि क्या इसके लिए सेना को बुलाया जाना चाहिए, क्योंकि पुलिस और नगर निगम अधिकारी अवैध फेरीवालों और विक्रेताओं को रोकने में नाकाम हैं। पिछले महीने अपने आदेश में न्यायालय ने कहा था कि फेरीवालों और स्ट्रीट वेंडरों ने सड़कों और गलियों पर कब्जा कर लिया है, जिससे लोगों के लिए फुटपाथ पर चलने के लिए कोई जगह नहीं बची है। इसमें कहा गया है कि अव्यवस्थित पार्किंग के अलावा, पैदल यात्रियों को अनधिकृत रेहड़ी-पटरी वालों और बेतरतीब ढंग से पार्क किए गए वाहनों के बीच से गुजरने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
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