जन्माष्टमी (Janmashtami 2022) का पर्व आने वाला है। इस साल यह पर्व 18 अगस्त को मनाया जाने वाला है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के लड्डू गोपाल स्वरूप की पूजा मुख्य तौर पर की जाती है। कहा जाता है लड्डू गोपाल श्रीकृष्ण का बाल रूप है, और इसमें उनके एक हाथ में लड्डू दिखाई देता है। इसके अलावा एक बात और जो इस स्वरूप में दिखाई देती है वो ये ही लड्डू गोपाल के वक्ष स्थल यानी छाती पर एक पैर कि चिह्न भी होता है। जी दरअसल लड्डू गोपाल की छाती पर पैर का चिह्न को बनाया जाता है, और इसके पीछे एक पुरातन कथा। आज हम आपको उसी कथा के बारे में बताने जा रहे हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार ऋषि-मुनियों में इस बात पर चर्चा हो रही थी कि त्रिदेवों- ब्रह्माजी, शिवजी और श्रीविष्णु में श्रेष्ठ कौन है? जब कोई भी इस बात के निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सका तो ब्रह्माजी के मानस पुत्र महर्षि भृगु को इस कार्य के लिए नियुक्त किया गया। महर्षि भृगु सबसे पहले ब्रह्माजी के पास गए। वहां जाकर महर्षि भृगु ने ब्रह्माजी को न तो प्रणाम किया और न ही उनकी स्तुति की। यह देख ब्रह्माजी क्रोधित हो गए, लेकिन फिर भी उन्होंने अपनी विवेक बुद्धि से क्रोध को दबा लिया। ब्रह्माजी के बाद महर्षि भृगु कैलाश गए। महर्षि भृगु को आया देख महादेव काफी प्रसन्न हुए और उन्होंने अपने आसन से उठकर महर्षि को गले लगाना चाहा। किंतु परीक्षा लेने के उद्देश्य से भृगु मुनि ने उनका आलिंगन अस्वीकार कर दिया और बोले कि "आप हमेशा धर्म की मर्यादा का उल्लंघन करते हैं। पापियों को आप जो वरदान देते हैं, उनसे देवताओं पर संकट आ जाता है। इसलिए मैं आपका आलिंगन कदापि नहीं करूँगा।"
ये सुनकर महादेव को क्रोध आ गया और उन्होंने जैसे ही अपना त्रिशूल उठाया, देवी पार्वती ने उन्हें रोक लिया। ब्रह्माजी और महादेव की परीक्षा लेने के बाद भृगु मुनि वैकुण्ठ लोक गए। वहां भगवान विष्णु देवी लक्ष्मी की गोद में सिर रखकर लेटे थे। भृगु ने जाते ही उनकी छाती पर लात मारी। ये देख विष्णुजी तुरंत उठे और महर्षि भृगु को प्रणाम करके बोले "हे महर्षि, आपके पैर पर चोट तो नहीं लगी? आपके चरणों का स्पर्श तीर्थों को पवित्र करने वाला है। आपके चरणों के स्पर्श से आज मैं धन्य हो गया।" भगवान विष्णु का ऐसा व्यवहार देखकर महर्षि भृगु की आँखों से आँसू बहने लगे। इसके बाद वे पुन: ऋषि-मुनियों के पास लौट आए और उन्हें ब्रह्माजी, शिवजी और श्रीविष्णु के यहाँ के सभी बातें विस्तारपूर्वक बता दी। उनकी बातें सुनकर सभी ऋषि-मुनि बड़े हैरान हुए और उन्होंने भगवान विष्णु को ही त्रिदेवों में सर्वश्रेष्ठ माना।
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