भगवान शिव की अगर बात करें तो यह देवो के देव महादेव के नाम से भी जाने जाते है। भगवान भोलेनाथ अन्य देवता से बहुत भोले हैं और इसलिए यह अपने भक्त की भक्ती से जल्दी प्रसन्न हो जाते है। इनकी भक्ति करना भी ज्यादा कठिन नहीं हैं। लेकिन इनसे जुड़ी बहुत सी ऐसी बातें है, जिनके बारे में शायद आप भी नहीं जानते होंगे। भगवान शिव को नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है। अगर आप ध्यान से देखोगे तो भगवान शिव का कंठ यानि की गला नीले रंग का है। क्या आप जानते हैं इसका कारण क्या है? आखिर क्यों भगवान शिव को नीलकंठ कहा जाता है?
शास्त्रों के अनुसार, देवताओं और राक्षसों के बीच एक बार अमृत मंथन हुआ था। यह मंथन दूध के सागर यानी क्षीरसागर में हुआ था। इस मंथन से लक्ष्मी, शंख, कौस्तुभमणि, ऐरावत, पारिजात, उच्चैःश्रवा, कामधेनु, कालकूट, रम्भा नामक अप्सरा, वारुणी मदिरा, चन्द्रमा, धन्वन्तरि, अमृत और कल्पवृक्ष ये 14 रत्न निकले थे। इनमें से देवता अपने साथ अमृत ले जाने में सफल हुए थे। लेकिन मंथन से 14 रत्न में से विष भी निकला था। माना जाता है, यह विष इतना खतरनाक था कि इसकी एक बूंद पूरे संसार को खत्म कर सकती थी। इस बात से परेशान सभी देवता और दानव हल ढूंढ़ने विष के घड़े को लेकर भगवान शिव के पास पहुंचे।
भगवान शिव ने इसका हल निकाला और वह खुद विष का पूरा घड़ा पी गए। लेकिन भगवान शिव ने ये विष गले से नीचे नहीं उतारा। कहा जाता है कि भगवान शिव ने इस विष को गले में ही रोक कर रखा। इसी वजह से उनका कंठ नीले रंग का हो गया, जिसके बाद उनका नाम नीलकंठ पड़ा।
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