आप सभी को बता दें कि किसी भी मंदिर में या हमारे घर में जब भी पूजन कर्म होते हैं तो वहां कुछ मंत्रों का जप अनिवार्य रूप से करते हैं. ऐसे में सभी देवी-देवताओं के मंत्र अलग-अलग हैं, लेकिन जब भी आरती पूर्ण होती है तो यह मंत्र विशेष रूप से बोला जाता है-
मंत्र - कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।
लेकिन आपने सोचा है कि यही मंत्र क्यों, अगर सोचा है और नहीं जानते हैं तो आइए बताते हैं हम आपको - कहा जाता है किसी भी देवी-देवता की आरती के बाद कर्पूरगौरम् करुणावतारम....मंत्र बोलते हैं और इसके पीछे बहुत गहरे अर्थ छिपे हुए हैं. जी हाँ, आप सभी को बता दें कि शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव की ये स्तुति शिव-पार्वती विवाह के समय विष्णु द्वारा गाई हुई मानी गई है और शिव शमशान वासी हैं, उनका स्वरुप बहुत भयंकर और अघोरी वाला है. वहीं ये स्तुति बताती है कि उनका स्वरुप बहुत दिव्य है.
आप सभी जानते ही होंगे कि शिव को सृष्टि का अधिपति माना गया है, वे मृत्युलोक के देवता हैं, उन्हें पशुपतिनाथ भी कहा जाता है, पशुपति का अर्थ है संसार के जितने भी जीव हैं (मनुष्य सहित) उन सब का अधिपति. ऐसे में ये स्तुति इसी कारण से गाई जाती है कि जो इस समस्त संसार का अधिपति है, वो हमारे मन में वास करे. कहते हैं शिव श्मशान वासी हैं, जो मृत्यु के भय को दूर करते हैं और हमारे मन में शिव वास करें, मृत्यु का भय दूर हो इस कारण इस मंत्र को हर आरती के बाद कहते हैं.
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