ईद का त्यौहार मुसलमानों के लिए बहुत ख़ास होता है. ऐसे में प्यार, मोहब्बत और भाईचारे का पर्व ईद इस बार 4 या 5 जून को मनाया जाने वाला है. जी हाँ, वहीं माह ए पाक रमजान की विदाई के साथ ही मुस्लिम भाई चांद दिखने का इंतजार करते हैं और आसमान में चांद के रौशन होते ही ईद की रंगत और रौनक पूरी दुनिया में फैल जाती है. ऐसे में कहा जाता है रमजान के पाक महीने में सब्र के 30 रोजे रखने के बाद ईद एक ऐसी रौनक के रूप में दाखिल होती है जहां प्यार, भाईचारा, अपनत्व और स्नेह बिखरा होता है. इसी के साथ बहुत कम ही लोग जानते हैं आखिर रमजान खत्म होने के बाद ईद क्यों मनाई जाती है. तो आइए जानते हैं ईद मनाने की वजह और मान्यताएं.
ईद मनाने का कारण- जी दरअसल ईद-उल-फितर या ईद सबसे पहले 624 ई. में मनाई गई थी और इस्लामिक कैलेंडर यानी की हिजरी कैलेंडर इसमें पहले एक साल का 9वां महीना होता था. कहा जाता है इस्लाम में इसे ही रमजान कहा जाता था और यह वही महीना है जिसमें मोहम्मद पैगंबर साहेब कुरान का इलहाम हुआ था. इस महीने में ही कुरान लिखी गई थी. इन सभी में खास बात यह है कि 30 दिन के इस महीने में आखिरी दिन का रोजा आसमान में चांद के दीदार के साथ तोड़ा जाता है और चांद दीदार के बाद ईद मनाई जाती है. वहीं ईद को मनाने के पीछे एक वजह और भी है. जी दरसल ऐसा भी कहते हैं कि इस दिन पैगंबर हजरत मोहम्मद ने इसी दिन बद्र के युद्ध में जीत हासिल की थी और इसी की खुशी में ईद मनाई जाती है.
इसी के साथ ईद के कुछ दिन पहले अलविदा जुम्मा बेहद खास माना जाता है और यह रमजान के महीने का आखिरी शुक्रवार होता है. वहीं हिजरी कैलेण्डर के मुताबिक साल में दो बार ईद मनाई जाती है और एक ईद-उल-फितर और दूसरी ईद-उल-जुहा. इसी के साथ ईद-उल-फितर को मीठी ईद भी कहा जाता है और दूसरी ईद को बकरीद. वहीं ईद के दिन मुसलमान भाई सुबह नमाज अदा करते हैं और मीठा खिलाकर रमजान के सारे रोजों के खत्म होने की खुशियां मनाते हैं और इस दिन दान यानी की जकात का भी खास महत्व है. कहते हैं रमजान में रोजे के दौरान भी जकात का खास महत्व होता है.
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