आप सभी को बता दें कि ज्योतिष के अनुसार, भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आश्विन की अमावस्या तक की अवधि को पितृपक्ष या महालय के कहा जाता है और गरुड़ पुराण में लिखा है कि देह त्यागकर पितृलोक को गए पूर्वज इन 15 दिनों में सूक्ष्म शरीर के साथ पृथ्वी पर आते हैं और परिवार के सदस्यों के बीच रहते हैं इस दौरान उनका अच्छे से आदर-सत्कार किया जाना चाहिए. ऐसे में जिन परिवारों में पितरों की पूजा नहीं होती, पितरों के नाम से अन्न, जल और पिंड नहीं दिए जाते, उनके पितर नाराज हो जाते हैं और परिवार को पितृदोष लग जाता है. तो आइए आज हम बताते हैं कि आखिर क्यों करते हैं अमावस्या को करते हैं श्राद्ध..
दरअसल कहा जाता है कि पितृपक्ष में पूर्वज हमें आशीर्वाद देने आते हैं और जिनका अंतिम संस्कार नहीं हुआ, जिनका विधिपूर्वक श्राद्ध नहीं हुआ, जिन्हें कोई जल नहीं देता है ऐसी असंख्य आत्माएं सूक्ष्म जगत में भटकती रहती हैं. ऐसे में यह अतृप्त आत्माएं ही हमारी उन्नति में बाधक होती है और तर्पण, पिंडदान और धूप देने से यह आत्माएं तृप्त हो जाती है इस वजह से उन्हें शांति देने तथा उनका आशीर्वाद पाने के लिए भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आश्विन की अमावस्या तक की अवधि में हम पिंड दान और तर्पण कर सकते हैं.
तिथि अज्ञात हो तो अमावस्या को श्राद्ध करें- कहा जाता है कि परिवार के जिस व्यक्ति की मृत्यु जिस तिथि को हुई हो उसी तिथि में उनका श्राद्ध करना चाहिए लेकिन अगर मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं हो तो अमावस्या को श्राद्ध कर देना चाहिए. कहा जाता है अकाल मृत्यु वालों का श्राद्ध चतुर्दशी को किया जाता है.
श्राद्ध में जरूर बनाए यह पकवान