नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने आज एक मामले की सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को फटकार लगाई। सर्वोच्च न्यायालय ने बीजेपी शासित प्रदेशों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने में नाकाम रहने पर केंद्र सरकार को फटकार लगाई। पूर्वोत्तर प्रदेश नागालैंड में आरक्षण मुद्दे पर केंद्र सरकार के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय ने सख्त टिप्पणियां कीं। सर्वोच्च न्यायालय ने सवाल उठाया कि प्रदेश में महिलाओं के लिए आरक्षण क्यों लागू नहीं किया गया? सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र से कहा, आप अपनी ही पार्टी की प्रदेश सरकारों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करते? सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र से कहा- आप अन्य प्रदेश सरकारों के खिलाफ तो कड़ा रुख अपनाते हैं जो आपके प्रति उत्तरदायी नहीं हैं, मगर जिस प्रदेश में आपकी पार्टी की सरकार होती है, वहां आप कुछ नहीं करते।
जस्टिस कौल ने पूछा कि क्या महिलाओं के लिए आरक्षण के विरुद्ध कोई प्रावधान है? महिलाओं की हिस्सेदारी का विरोध क्यों जबकि जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाएं समान रूप से सम्मिलित हैं। इसके जवाब में एटॉर्नी जनरल नागालैंड ने कहा कि ऐसे महिला संगठन हैं जो बोलते हैं कि उन्हें आरक्षण नहीं चाहिए तथा ये कोई छोटी संख्या नहीं है। ये पढ़ी-लिखी महिलाएं हैं। फिर जस्टिस कौल ने कहा, हमने आपको एक बहुत लंबी रस्सी दी है। आपने वचन दिया था कि आप ऐसा करेंगे, किन्तु मुकर गए। यही हमारी चिंता है। यथास्थिति में परिवर्तन का हमेशा विरोध होता है। मगर, किसी को यथास्थिति बदलने की जिम्मेदारी लेनी होगी। इसके जवाब में सरकार की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता ने कहा, प्रदेश ने कुछ अभ्यास आरम्भ किए हैं। वे कुछ कानून बनाना चाहते हैं। उत्तर पूर्व में जो स्थिति है, उसे देखते हुए वक़्त दिया जाए।
जस्टिस कौल ने कहा, मगर मौजूदा मुद्दा अलग है। क्या समाज के आधे हिस्से को प्रशासनिक प्रक्रिया में एक तिहाई हिस्सेदारी मिलती है। यह अजीब है कि महाधिवक्ता संवैधानिक प्रावधान को लागू करने के लिए संबंधित राजनीतिक व्यवस्था से बात करने के लिए नौवीं बार निर्देश मांग रहे हैं। एजी की भावुक दलील को देखते हुए, हम एक अंतिम अवसर देने के इच्छुक हैं। हम सिर्फ इतना कह सकते हैं कि नागालैंड के जो भी व्यक्तिगत कानून हैं तथा उन्हें प्रदेश का विशेष दर्जा दिया गया है, उन्हें किसी भी प्रकार से नहीं छुआ जा रहा है। यह एक ऐसा प्रदेश है जहां महिलाओं की शिक्षा, आर्थिक और सामाजिक स्थिति सबसे अच्छी है। इसीलिए हम यह स्वीकार नहीं कर सकते कि महिलाओं के लिए आरक्षण क्यों लागू नहीं किया जा सकता।
जस्टिस कौल ने कहा कि केंद्र सरकार इस मुद्दे से अपना हाथ नहीं झाड़ सकती। इसका कार्य इस तथ्य से सरल हो गया है कि प्रदेश में राजनीतिक व्यवस्था केंद्र में राजनीतिक व्यवस्था के अनुरूप है। चीजों को अंतिम रूप देने के लिए प्रदेश को अंतिम अवसर देना चाहिए। इस मामले में कोर्ट ने 26 सितंबर तक का वक़्त दिया है। जज ने कहा कि अगर आप अगली बार समाधान नहीं ढूंढते हैं तो हम मामले की सुनवाई करेंगे और आखिरी फैसला लेंगे। सर्वोच्च न्यायालय ने इस सुनवाई में मणिपुर के हालात का भी जिक्र किया। बता दें कि मणिपुर में बिगड़े हालातों पर सर्वोच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस पहले ही स्वत: संज्ञान लेने की बात कह चुके हैं। दरअसल 4 मई के वायरल वीडियो पर स्वत: संज्ञान लेते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को केंद्र और मणिपुर सरकार से अपराधियों को जवाबदेह ठहराने के लिए उठाए गए कदमों के सिलसिले में कोर्ट को अवगत कराने को कहा था। अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी एवं एसजी तुषार मेहता को तलब करते हुए CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने घटना के सिलसिले में गहरी नाराजगी जताते हुए सरकारों को अल्टीमेटम दिया था कि या तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए, वरना कोर्ट दखल देगी।
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