मुंबई: सुप्रीम कोर्ट में आज महाराष्ट्र सरकार को लेकर बड़ा फैसला होने वाला है। सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ उद्धव ठाकरे-एकनाथ शिंदे के शिवसेना में टूट और महाराष्ट्र में सरकार बदलने को लेकर दाखिल याचिकाओं पर फैसला सुनाएगी। अदालत के इस फैसले से उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे का सियासी भविष्य भी निर्धारित होगा। लेकिन, कई लोगों के जेहन में अब भी ये सवाल उठता है कि, आखिर बालासाहेब ठाकरे द्वारा हिंदुत्व की रक्षा के लिए स्थापित की गई शिवसेना में फूट पड़ी क्यों ? तो आइए जानते हैं, इसकी पूरी कहानी। बात शुरू होती है, 2019 के विधानसभा चुनाव से, जब भाजपा और शिवसेना ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था। राज्य की जनता ने कांग्रेस-एनसीपी को नकारते हुए भाजपा गठबंधन को स्पष्ट बहुमत भी दिया था। इस चुनाव में भाजपा ने सर्वाधिक 105 सीटें जीती थी, जबकि शिवसेना को 56 सीटों पर विजय मिली थी। वहीं, एनसीपी को 54 और कांग्रेस को 44 सीटों से संतोष करना पड़ा था।
ऐसे में प्रचंड बहुमत के साथ भाजपा गठबंधन की सरकार बन रही थी, लेकिन एन वक़्त पर उद्धव ठाकरे ने सीएम पद की मांग कर डाली। भाजपा का कहना था कि, चुनाव देवेंद्र फडणवीस को ही सीएम फेस बनाकर लड़ा गया, ऐसे में किसी और को कैसे सीएम बनाया जा सकता है ? लेकिन, उद्धव अड़े रहे। आखिरकार, जब भाजपा नहीं मानी तो, उद्धव वाली शिवसेना ने बालासाहेब की विचारधारा से उलट जाकर कांग्रेस और NCP के साथ मिलकर सरकार बना ली और खुद सीएम बन गए। उद्धव ठाकरे के कांग्रेस-NCP से गठबंधन करने के कुछ समय बाद से ही शिवसेना में बगावत के सुर उठने लगे थे। बालासाहेब ठाकरे के कट्टर समर्थकों का मानना था कि, बालासाहेब कांग्रेस से गठबंधन करने के सख्त खिलाफ थे। बालासाहेब कहते थे कि, सोनिया गांधी के सामने हिजड़े झुकते हैं। इसी चिंगारी ने धीरे-धीरे आग तब पकड़ी, जब उद्धव सरकार में कांग्रेस और NCP का अधिक दखल होने लगा और शिवसेना की हिंदुत्व वाली छवि खराब होने लगी। जिसमे पालघर में पुलिस के सामने दो संतों की बेरहमी से हत्या होने के मामले ने मुख्यमंत्री उद्धव पर गंभीर सवाल उठने लगे।
ऐसे में शिवसेना के नेताओं को लगा कि, वे अगली बार किस मुंह से जनता के सामने वोट मांगने जाएंगे, आज तक वे जिस कांग्रेस और NCP के खिलाफ प्रचार करते थे, उनके साथ उद्धव ने हाथ मिला लिया है और बालासाहेब की विचारधारा को छोड़ दिया है। यही मुद्दा जब आगे बढ़ा, तो एकनाथ शिंदे की अगुवाई में शिवसेना विधायकों का बड़ा समूह अपने आप को बालासाहेब की असली शिवसेना बताते हुए और उनके पदचिन्हों पर चलने की बात कहते हुए भाजपा से हाथ मिलाने पहुँच गया और सरकार बना ली। अब उद्धव ठाकरे का दावा है कि, असली शिवसेना उनकी ही है, क्योंकि वे बालासाहेब के पुत्र हैं, वहीं, शिंदे गुट का कहना है कि, जो बालासाहेब की विचारधारा पर चलेगा वही असली शिवसेना है। इसी झगड़े में चुनाव आयोग ने शिवसेना का नाम और चुनाव चिन्ह शिंदे गुट को दे दिया। और अब उद्धव ठाकरे, भाजपा के साथ जाने वाले शिवसेना विधायकों को अयोग्य घोषित करने कि मांग लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हुए हैं, जिसपर आज फैसला आना है।
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