नई दिल्ली: आज सोमवार को देश की राजधानी दिल्ली के रामलीला मैदान में हजारों किसान इकट्ठा हुए। दिल्ली पुलिस ने इसके लिए पहले से ही तैयारी कर रखी थी। जगह-जगह रूट भी डायवर्ट किए गए, ताकि आम लोगों को समस्या न हो। किसान नेताओं की कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के साथ बैठक हुई। जिसके बाद किसान नेता दर्शन पाल सिंह ने बताया कि बैठक में मांग पत्र सौंपा गया है। सरकार ने बिजली बिल वाली मांग मान ली है। इसके साथ ही संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) के नेताओं ने सरकार को चेतावनी भी दी है कि, यदि MSP को लेकर उनकी मांग नहीं मानी गई तो, वे 2020 से भी बड़ा आंदोलन करेंगे।
बता दें कि, केंद्र सरकार जून 2020 में 3 नए कृषि कानून लेकर आई थी। इसके बाद हुई सियासी बयानबाज़ी के चलते 5 माह बाद ही दिल्ली से सटी सरहदों पर हज़ारों किसानों का आंदोलन शुरू हो गया था, जिसमे से अधिकतर किसान पंजाब-हरियाणा के थे। ये आंदोलन एक साल तक चला था। इतने दिनों तक रास्ते भी जाम रहे और आम लोगों को काफी समस्या हुई। यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा था और अदालत ने इसकी जांच के लिए एक कमिटी का गठन किया था। हालाँकि, वक़्त गुजरता गया और देश को 12 लाख करोड़ रुपए का नुकसान होने के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवंबर 2021 को तीनों कृषि कानून वापस ले लिए। लेकिन, इससे पहले 21 मार्च 2021 को सुप्रीम कोर्ट में कृषि कानूनों के नफा-नुकसान की जानकारी देने वाली रिपोर्ट जमा हो चुकी थी, मगर उसे सार्वजनिक नहीं किया गया था।
रिपोर्ट मार्च 2022 में सामने आई, जिसमे बताया गया था कि, देश के 86 फीसद किसान संगठन इन कानूनों के पक्ष में हैं। रिपोर्ट सामने आने के बाद SC की कमिटी के सदस्य और किसान नेता अनिल घनवट ने कहा था कि, कानूनों को वापस लेकर मोदी सरकार ने बड़ी भूल की है। घनवट ने माना था कि इस रिपोर्ट से किसानों को कृषि कानूनों के फायदे के बारे में समझाया जा सकता था और इनको रद्द होने से रोका जा सकता था। लेकिन अगर विपक्ष हंगामा न करता तो संभव था कि, न 700 किसानों की जान जाती और न देश को बड़ा आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता।
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