बैंगलोर: कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उनकी पत्नी बीएम पार्वती एक विवादास्पद मामले में घिर गए हैं। यह मामला मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) साइट आवंटन घोटाले से जुड़ा हुआ है, जिसमें सीएम सिद्धारमैया को मुख्य आरोपी और उनकी पत्नी को दूसरे आरोपी के रूप में नामित किया गया है। शुक्रवार, 25 अक्टूबर को लोकायुक्त पुलिस ने पार्वती सिद्धारमैया से गुप्त स्थान पर पूछताछ की। यह पूछताछ दो घंटे से अधिक समय तक चली, जिससे यह मामला और गंभीर बन गया है।
MUDA साइट आवंटन घोटाले के आरोप हैं कि सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती ने मैसूर में 14 प्रमुख प्लॉट अवैध तरीके से प्राप्त किए, जिनकी अनुमानित कीमत ₹56 करोड़ है। दावा किया गया है कि पार्वती ने कासरे गांव में 3.16 एकड़ जमीन के बदले ये प्लॉट हासिल किए थे, लेकिन उन पर उनका कोई कानूनी अधिकार नहीं था। यह जमीन उनके भाई मल्लिकार्जुन स्वामी ने उन्हें दी थी, जिन्होंने इसे देवराजू से प्राप्त किया था। इस पूरे घोटाले को "50-50 घोटाला" का नाम दिया गया है, जिसमें राजनेताओं और अधिकारियों के बीच लाभ-साझाकरण के आरोप लगाए गए हैं।
लोकायुक्त पुलिस ने उच्च न्यायालय के निर्देश पर 24 सितंबर को एक प्राथमिकी दर्ज की थी। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने राज्यपाल की मंजूरी को बरकरार रखा था, जिससे सिद्धारमैया के खिलाफ जांच का रास्ता साफ हुआ। अब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भी इस मामले में शामिल हो गया है, जो मनी लॉन्ड्रिंग की जांच कर रहा है।
इस घोटाले के बीच पार्वती सिद्धारमैया पर 14 प्लॉट गुपचुप तरीके से लौटाने का आरोप भी है। ऐसा कहा जा रहा है कि उन्होंने यह आवंटन रद्द करने की प्रक्रिया को पूरी तरह से गोपनीय रखा, जिससे और सवाल खड़े हो रहे हैं। वहीं, सीएम सिद्धारमैया ने इस मामले में अपने खिलाफ कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने की अपील दायर की है।
इस पूरे मामले पर विपक्षी दलों ने सिद्धारमैया और उनकी सरकार की कड़ी आलोचना की है। भाजपा ने इस घोटाले की निष्पक्ष जांच के लिए मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग की है। उनका आरोप है कि मुख्यमंत्री पद पर बने रहकर सिद्धारमैया जांच को प्रभावित कर सकते हैं। इस घोटाले में लोकायुक्त, ईडी और अन्य जांच एजेंसियों की भागीदारी के बीच यह सवाल उठ रहा है कि क्या MUDA घोटाला मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की कुर्सी छीन लेगा? आलोचक इसे भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग का मामला बता रहे हैं और पारदर्शी जांच की मांग कर रहे हैं।
इसके अलावा, शिकायतकर्ता स्नेहमयी कृष्णा ने भी सवाल उठाए हैं कि बिना कानूनी अधिकार के कैसे प्लॉट आवंटित किए गए और कैसे कृषि भूमि को बेचा गया। उन्होंने मामले की निष्पक्ष जांच के लिए लोकायुक्त से विशेष आग्रह किया है। सिद्धारमैया की अपील पर उच्च न्यायालय का आगामी निर्णय इस मामले की दिशा तय करेगा। लेकिन तब तक, राज्य सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोपों का दबाव और बढ़ता रहेगा, और यह देखना दिलचस्प होगा कि इस पूरे घोटाले का राजनीतिक असर क्या होता है।
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