बैंगलोर: कर्नाटक में राज्यपाल थावर चंद गहलोत और राज्य की कांग्रेस सरकार के बीच तनाव और भी बढ़ गया है। राज्यपाल लगातार सरकार को विभिन्न मुद्दों पर पत्र लिखकर स्पष्टीकरण मांग रहे हैं, जिससे "पत्र युद्ध" शुरू हो गया है। इसका जवाब देते हुए मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की अगुवाई में हुई कैबिनेट बैठक में यह निर्णय लिया गया कि अब राज्यपाल के पत्रों का जवाब मुख्य सचिव द्वारा नहीं दिया जाएगा। इसके बजाय, इन पत्रों का जवाब कैबिनेट सामूहिक रूप से देगी। मुख्य सचिव शालिनी रजनीश को निर्देश दिए गए हैं कि राज्यपाल के पत्रों को सीधे जवाब देने के बजाय कैबिनेट में समीक्षा के लिए प्रस्तुत करें।
राज्य सरकार के इस कदम से दोनों पक्षों के बीच तनाव और बढ़ने के संकेत मिले हैं। कानून मंत्री एच.के. पाटिल ने बताया कि राज्यपाल द्वारा लगातार पत्रों में तत्काल उत्तर मांगा जा रहा था, जिसे सरकार अनुचित मानती है। इसलिए अब कैबिनेट सामूहिक रूप से निर्णय लेकर ही इन पत्रों का उत्तर देगी। इसके अलावा, कर्नाटक सरकार ने CBI को दी गई खुली जांच की अनुमति भी वापस ले ली है। पहले राज्य सरकार ने CBI को भ्रष्टाचार और अन्य आपराधिक मामलों की स्वतंत्र जांच की अनुमति दी थी, लेकिन अब इसे रद्द कर दिया गया है। कानून मंत्री पाटिल ने CBI के राजनीतिक दुरुपयोग की आशंका जताते हुए कहा कि कई मामलों में जांच अधूरी रह गई है और आरोप पत्र दाखिल नहीं हुए हैं, जिससे यह कदम उठाया गया।
इन फैसलों को राज्य सरकार की स्वायत्तता और केंद्र सरकार के अनुचित हस्तक्षेप के खिलाफ उठाए गए कदम के रूप में देखा जा रहा है। यह राज्य और केंद्र के बीच बढ़ते तनाव की ओर भी इशारा करता है, क्योंकि भाजपा के नेतृत्व वाले केंद्र और कांग्रेस की कर्नाटक सरकार के बीच मतभेद लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इस बीच, कांग्रेस नेता केबी कोलीवाड़ा ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से इस्तीफे की मांग की है, जबकि उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने इसे भाजपा और जेडीएस की साजिश बताया। उन्होंने कहा कि सिद्धारमैया का इस्तीफा देने का कोई सवाल नहीं है और पार्टी पूरी तरह से उनके साथ खड़ी है। खुद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने भी इस्तीफा देने से इनकार करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी गोधरा दंगों के दौरान इस्तीफा नहीं दिया था, तो वह भी इस्तीफा नहीं देंगे।
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