बैंगलोर: कर्नाटक के बेंगलुरु में एक दर्दनाक घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। 72 वर्षीय एक वरिष्ठ नागरिक ने सरकारी अस्पताल द्वारा आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (एबी पीएम-जेएवाई) के तहत इलाज देने से इंकार किए जाने पर आत्महत्या कर ली। यह घटना किदवई मेमोरियल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑन्कोलॉजी (कैंसर अस्पताल) में घटी, जहाँ अस्पताल प्रशासन ने ₹5 लाख की चिकित्सा सहायता देने से यह कहते हुए मना कर दिया कि राज्य सरकार के आदेश अभी तक नहीं पहुँचे हैं।
इस घटना ने कर्नाटक की कांग्रेस सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। सवाल उठ रहे हैं कि अगर राज्य सरकार की केंद्र सरकार से राजनीतिक मतभेद हैं, तो उसका खामियाजा आम आदमी क्यों भुगते? क्या यह केंद्र सरकार की योजना को बाधित करने की कोशिश है, या प्रशासनिक लापरवाही? राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने इस मामले को मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन का मामला मानते हुए स्वतः संज्ञान लिया है। आयोग ने केंद्र सरकार और कर्नाटक सरकार दोनों को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है। आयोग ने यह भी पूछा है कि राज्य और अन्य केंद्र शासित प्रदेशों में योजना का क्रियान्वयन किस तरह से किया जा रहा है।
गौरतलब है कि आयुष्मान भारत योजना का उद्देश्य गरीब और जरूरतमंद नागरिकों को विशेष स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराना है। इसके तहत प्रत्येक लाभार्थी को ₹5 लाख तक का स्वास्थ्य कवर दिया जाता है। लेकिन बेंगलुरु की इस घटना ने दिखाया है कि योजना के सही क्रियान्वयन में गंभीर खामियाँ हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कर्नाटक में अन्य सरकारी अस्पताल भी इस योजना के तहत इलाज देने में आनाकानी कर रहे हैं। लाभार्थियों से अनावश्यक कागजात माँगे जा रहे हैं और राज्य सरकार के आदेशों की कमी का हवाला देकर इलाज में देरी की जा रही है।
यदि अस्पताल ने उस वरिष्ठ नागरिक को योजना के तहत इलाज उपलब्ध कराया होता, तो शायद उसकी जान बचाई जा सकती थी। अब सवाल यह है कि केंद्र की एक महत्वाकांक्षी योजना को राज्य में लागू करने में ऐसी रुकावटें क्यों आ रही हैं? क्या यह प्रशासनिक लापरवाही है, या केंद्र और राज्य के बीच आपसी खींचतान का परिणाम?
इस घटना ने न केवल आयुष्मान भारत योजना की प्रभावशीलता पर सवाल उठाए हैं, बल्कि यह भी दिखाया है कि राजनीतिक और प्रशासनिक असमंजस का खामियाजा किस तरह आम जनता को उठाना पड़ता है। वृद्ध व्यक्ति की मौत ने इस बात की तस्दीक कर दी है कि राजनितिक दुर्भावना के कारण रोकी गई योजनाओं के कारण उनका कोई महत्व नहीं रह जाता। जैसा कि कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने भाजपा की आयुष्मान योजना को रोककर किया है, जिसका खामियाज़ा एक बुजुर्ग को अपनी जान देकर चुकाना पड़ा है।