जयपुर: राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत के साथ जारी वर्चस्व की जंग के बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट अपने वफादार मंत्रियों और विधायकों के साथ शक्ति प्रदर्शन करना शुरू कर दिया है। उनके इस कदम ने राजस्थानी के सियासी गलियारों की हलचल बढ़ा दी है। उनके इस कदम को अगले विधानसभा चुनाव से पहले खुद को CM पोस्ट का मजबूत दावेदार बनाने की दिशा में एक प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।
हालांकि, सचिन पायलट के बदले हुए तेवर को देखकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। रैलियों को दौरान वह भाजपा से अधिक अपनी ही सरकार को घेरते दिखाई देते हैं। पायलट ने 16 जनवरी के बाद से परबतसर, पीलीबंगा, गुढ़ा और बाली में रैलियां निकाली हैं। वह 20 जनवरी को जयपुर में अपनी रैलियों का समापन करेंगे। ऐसा प्रतीत होता है कि पायलट ने अपनी रैलियों के समय को अच्छी तरह से मैनेज किया है। पायलट 23 जनवरी से आरंभ होने वाले विधानसभा के बजट सत्र के लिए एजेंडा सेट करना चाहते हैं। पहली दो रैलियों के दौरान सीएम अशोक गहलोत का चिंतन शिविर (16-17 जनवरी) जारी था।
कांग्रेस हाईकमान की तरफ से अभी तक इस बात पर कुछ भी नहीं कहा गया है कि क्या उसने पायलट को रैलियों की अनुमति दी है या नहीं। हाईकमान की चुप्पी ने राजस्थान के सियासी गलियारों को चर्चा करने और कयास लगाने का अवसर दे दिया है। बता दें कि कांग्रेस को इसी वर्चस्व की लड़ाई की वजह से पंजाब में अपनी सरकार खोनी पड़ गई थी। पंजाब में कांग्रेस ने चरणजीत सिंह चन्नी जैसे कमजोर नेता को कैप्टन अमरिंदर सिंह की जगह CM बना दिया था। पंजाब प्रकरण से सीख लेते हुए आलाकमान शायद अशोक गहलोत के साथ ही चलने का निर्णय लिया है। सचिन पायलट को अब अपने आधार वोट को बढ़ाने की जरूरत दिखने लगी है। ऐसे में माना जा रहा है कि सचिन पायलट भाजपा के साथ जा सकते हैं। हालाँकि, कांग्रेस हाईकमान सचिन पायलट की बात मानता है, या वो बागी होकर कोई बड़ा कदम उठाते हैं, ये तो वक़्त ही बताएगा।
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