क्या गंगा में डुबकी लगाने से गरीबी मिट जाएगी..? कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का बयान, क्या समझे जनता..?

क्या गंगा में डुबकी लगाने से गरीबी मिट जाएगी..? कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का बयान, क्या समझे जनता..?
Share:

नई दिल्ली: कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने मध्य प्रदेश के महू में आयोजित "जय बापू, जय भीम, जय संविधान" रैली में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और उसके नेताओं पर तीखा हमला बोला। खड़गे ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के प्रयागराज महाकुंभ में डुबकी लगाने पर सवाल उठाते हुए कहा, "गंगा में डुबकी लगाने से क्या युवाओं को रोजगार मिलेगा? गरीबी दूर होगी? पेट भरेगा?" हालाँकि, इस बयान ने एक बार फिर कांग्रेस की धर्म से जुड़ी राजनीति और हिंदू आस्थाओं पर उसके दृष्टिकोण को लेकर विवाद खड़ा कर दिया।

खड़गे ने अपने बयान में कहा कि वह किसी की आस्था पर चोट नहीं करना चाहते, लेकिन यह भी जोड़ा कि जब तक टीवी पर "अच्छी डुबकी" नहीं आती, लोग बार-बार डुबकी लगाते रहते हैं। उनका कहना था कि धर्म पर सभी की आस्था है, लेकिन गरीबों का शोषण धर्म के नाम पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। खड़गे के इस बयान से यह सवाल भी उठता है कि क्या कांग्रेस अपने खुद के इतिहास को भूल रही है? जब कांग्रेस के नेता राष्ट्रीय स्तर से लेकर जिला स्तर तक इफ्तार पार्टियों का आयोजन करते थे और हर साल जालीदार टोपी पहनकर फोटो खिंचवाते थे, तब क्या उन्होंने यह पूछा था कि इससे गरीबी दूर होगी? क्या इफ्तार पार्टियों से बेरोजगारी खत्म हो जाएगी? 

या जब अयोध्या प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण ठुकराने वाले गाँधी परिवार के पूरे वंशज अफगानिस्तान जाकर बाबर की कब्र पर श्रद्धांजलि देकर आ गए, उससे गरीबी मिट गई ? आपको जानकर हैरानी होगी कि जवाहरलाल नेहरु से लेकर इंदिरा गांधी और राहुल गांधी तक बाबर की कब्र पर नमन करके आ चुके हैं, किन्तु अब तक नेहरू-गांधी परिवार का कोई भी वंशज अयोध्या रामलला के दर्शन को नहीं आया, निमंत्रण के बावजूद नहीं आया और फिर राहुल गांधी खुद को दत्तात्रेय गौत्र का ब्राह्मण बताते हैं, जो लालू यादव के साथ मटन बनाना सीखते हैं? खैर वो उनकी व्यक्तिगत बात है, जैसे अमित शाह का स्नान करना व्यक्तिगत है, करोड़ों श्रद्धालुओं में अमित शाह भी एक श्रद्धालु हैं, गरीबी, बेरोज़गारी का मुद्दा उठाने के लिए सरकार की नीतियां हैं, उन्हें हथियार बनाया जाना चाहिए कि फलां नीति की वजह से रोज़गार ठप्प हुआ, आस्था को क्यों नीचे दिखाया जा रहा है ?  

बीजेपी समर्थकों ने खड़गे के इस बयान को "हिंदू आस्थाओं पर हमला" बताया है। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि अमित शाह ने पहले गुरुद्वारे में कीर्तन करते हुए भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी। अगर खड़गे यह कह सकते हैं कि गंगा में डुबकी लगाने से गरीबी दूर नहीं होती, तो क्या वह यह कहने की हिम्मत करेंगे कि गुरुद्वारे में कीर्तन करने से भी बेरोजगारी खत्म नहीं होगी? सवाल यह है कि कांग्रेस हमेशा हिंदू धर्म और उससे जुड़ी परंपराओं पर ही निशाना क्यों साधती है?

खड़गे ने यह भी कहा कि समाज में समानता स्थापित करना बाबा साहब अंबेडकर का लक्ष्य था, जिसे महात्मा गांधी और पंडित नेहरू ने पूरा समर्थन दिया था। उन्होंने कहा कि संविधान ने जिन अधिकारों की गारंटी दी है, उनका इस्तेमाल करके ही बदलाव लाया जा सकता है। खड़गे ने मध्य प्रदेश की एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि एक आदिवासी युवक के साथ अमानवीय व्यवहार किया गया था। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर कटाक्ष करते हुए कहा कि पैर धोने से बदलाव नहीं आएगा, बल्कि संविधान के जरिए गरीबों और वंचितों के अधिकारों की रक्षा करनी होगी। 

यह बयान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के प्रयागराज में साधु-संतों के साथ महाकुंभ स्नान के ठीक बाद आया। शाह के साथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी संगम पर डुबकी लगाने पहुंचे थे। शाह और योगी के इस धार्मिक आयोजन पर कांग्रेस की तीखी प्रतिक्रिया ने बीजेपी समर्थकों को एक बार फिर मौका दे दिया कि वे कांग्रेस पर हिंदू-विरोधी होने का आरोप लगाएँ।

दरअसल, खड़गे के बयान ने कांग्रेस की धर्म आधारित राजनीति को सवालों के घेरे में ला दिया है। क्या गरीबी, बेरोजगारी और अन्य मुद्दों को उठाने के लिए धार्मिक आयोजनों पर निशाना साधना जरूरी है? सवाल यह भी है कि अगर गंगा स्नान से गरीबों की मदद नहीं होती, तो क्या कांग्रेस के इफ्तार आयोजन और टोपी पहनने से गरीबी दूर होती है? 

यह साफ है कि खड़गे का बयान एक तरफ सरकार की नीतियों की आलोचना है, लेकिन दूसरी तरफ यह हिंदू आस्थाओं पर सीधा हमला करता हुआ भी दिखता है। चुनावी हार के बाद भी कांग्रेस की यह रणनीति दिखाती है कि पार्टी अब भी हिंदू धर्म से जुड़े संस्कारों पर सवाल उठाने से परहेज नहीं कर रही।

Share:

रिलेटेड टॉपिक्स
- Sponsored Advert -
- Sponsored Advert -