क्या उपराष्ट्रपति और कानून मंत्री को पद से हटा देगी अदालत ? जानिए क्या है संवैधानिक प्रक्रिया

क्या उपराष्ट्रपति और कानून मंत्री को पद से हटा देगी अदालत ? जानिए क्या है संवैधानिक प्रक्रिया
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नई दिल्ली: जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया को लेकर केंद्र और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के बीच टकराव की स्थिति बनी हुई है। इस मामले को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में अवमानना याचिका दाखिल हुई थी। इस पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने केंद्र को सख्त कदम उठाने की चेतावनी दी। इसके बाद केंद्र ने हलफनामा दाखिल करते हुए जजों की नियुक्ति वाली सिफारिशों को 5 दिन में मंजूरी देने की बात कही है।

दरअसल, जजों की नियुक्ति पर केंद्र द्वारा सवाल उठाए जाने के बाद बेंगलुरु के एडवोकेट्स एसोसिएशन अवमानना की याचिका लगाई थी। जजों की नियुक्ति को लेकर केंद्र सरकार द्वारा स्वीकृति दिए जाने में देरी को लेकर शीर्ष अदालत ने नाराजगी जाहिर की थी। अदालत ने कहा था कि, 'यह बेहद गंभीर मामला है। हमें ऐसा स्टैंड लेने पर विवश न करें, जिससे समस्या हो।' दूसरी ओर कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना करने के चलते देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू के खिलाफ बॉम्बे उच्च न्यायालय में एक याचिका  दाखिल हुई है। बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन ने अपनी याचिका में धनखड़ और रिजिजू को उनके पद से हटाने की माँग की है।

हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट द्वारा कड़ा स्टैंड लेने की चेतावनी देने के बाद केंद्र सरकार ने अदालत से कह दिया था कि कॉलेजियम द्वारा भेजी गई सिफारिशों को वह पाँच में दिनों में स्वीकृति दे देगी। ऐसे में लोगों के मन में ये सवाल है कि, क्या बॉम्बे उच्च न्यायालय, उपराष्ट्रपति और कानून मंत्री को हटाने का कोई फैसला ले सकता है ? ऐसे में हमें पहले उपराष्ट्रपति के चुनाव को समझना होगा, तभी हम उन्हें हटाने की प्रक्रिया को समझ पाएंगे।

कैसे होता है उपराष्ट्रपति का चुनाव?

बता दें कि उपराष्ट्रपति का पद संवैधानिक पद होता है, जो राष्ट्रपति के बाद देश का दूसरा सर्वोच्च पद होता है। उपराष्ट्रपति का कार्यकाल 5 सालों का होता है, मगर कार्यकाल ख़त्म के बाद भी वह पद पर तब तक बने रह सकते हैं, जब तक कि उनके उत्तराधिकारी द्वारा पद ग्रहण नहीं कर लिया जाता। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव अधिनियम 1952 तथा राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव नियम 1974 के साथ संविधान के अनुच्छेद 324 में उपराष्ट्रपति के चुनाव का जिक्र किया गया है। उपराष्ट्रपति के चुनाव का संचालन, निर्देशन और नियंत्रण भारत चुनाव आयोग (ECI) द्वारा किया जाता है।  

वर्तमान उपराष्ट्रपति का कार्यकाल ख़त्म होने के 60 दिन पहले उपराष्ट्रपति पद के चुनाव की नोटिफिकेशन जारी की जाती है। इसके बाद केंद्र सरकार से परामर्श के बाद निर्वाचन आयोग, लोकसभा और राज्यसभा के महासचिव को बारी-बारी से चुनाव अधिकारी (रिटर्निंग ऑफिसर) के रूप में नियुक्त करता है। इसके बाद राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति चुनाव नियम 1974 के नियम 8 के तहत चुनाव के लिए संसद भवन में वोटिंग होती है। इस चुनाव में संसद के दोनों सदनों के प्रतिनिधि वोट डालते हैं। भारत के संविधान के अनुच्छेद 66 के मुताबिक, उपराष्ट्रपति का चुनाव निर्वाचन मंडल के सदस्यों द्वारा किया जाता है। निर्वाचन मंडल में राज्यसभा के निर्वाचित सांसद, राज्यसभा के मनोनीत सदस्य और लोकसभा के निर्वाचित सांसद शामिल होते हैं।

उपराष्ट्रपति को हटाने की प्रक्रिया:-

बता दें कि, उपराष्ट्रपति संसद के उच्च सदन यानी राज्यसभा के सभापति भी होते हैं। हालाँकि, उनके पास लाभ का कोई पद नहीं होता है। उपराष्ट्रपति भारत के राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा देकर अपना पद छोड़ सकते हैं। जिस दिन राष्ट्रपति इस्तीफे को मंजूर कर लेंगे, उस दिन से यह प्रभावी हो जाता है। वहीं, यदि उपराष्ट्रपति को हटाने की बात करें, तो उन्हें उच्च सदन के एक प्रस्ताव द्वारा पद से हटाने के लिए महाभियोग की प्रक्रिया आरम्भ की जाती है। लेकिन, उसके लिए भी इस प्रस्ताव को सदन में मौजूद सदस्यों द्वारा बहुमत से पारित किया जाना जरूरी है। राज्यसभा में पारित होने के बाद महाभियोग का प्रस्ताव संसद के निचले सदन यानी लोकसभा में जाता है, यहाँ भी उसका बहुमत से पारित होना जरुरी है।

वहीं, प्रस्ताव पेश करने के पहले कम-से-कम 14 दिनों का नोटिस दिया जाना आवश्यक है। यानी, इस प्रकार से यदि देखा जाए तो, उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उपराष्ट्रपति को पद से हटाया नहीं जा सकता है। उपराष्ट्रपति को हटाने की प्रक्रिया संसद में होती है और संविधान में वर्णित नियमों के मुताबिक ही उन्हें पदमुक्त किया जा सकता है। हालाँकि, संविधान के अनुच्छेद 71(1) के तहत उपराष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित निर्वाचन अनाचार के आधार पर या फिर अनुच्छेद 71(3) के तहत किसी वजह से अयोग्य घोषित होने पर उपराष्ट्रपति को उनके पद से हटाया जा सकता है।

मंत्री की नियुक्ति और हटाने की प्रक्रिया:-

बता दें कि, मंत्रीमंडल प्रधानमंत्री के अंतर्गत आता है। ऐसे में किसी मंत्री को पद से हटाने की शक्ति राष्ट्रपति के पास होती है। इसके अतिरिक्त, प्रधानमंत्री की सलाह पर किसी भी मंत्री को उसके पद से मुक्त किया जा सकता है। इसके अलावा, यदि अदालत से मंत्री किसी मामले में अयोग्य घोषित हो जाता है, तो उसे पद से मुक्त किया जा सकता है। हालाँकि, अभी तक कोर्ट ने दिल्ली के जेल मंत्री सत्येंद्र जैन को ही अयोग्य घोषित नहीं किया है, जो बीते 8 महीनों से भ्रष्टाचार के मामले में जेल में बंद हैं। ऐसे में ये प्रक्रिया भी काफी जटिल है। 

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