क्या भारत में सिनेमा की जगह छीन लेगा OTT प्लेटफॉर्म...?

क्या भारत में सिनेमा की जगह छीन लेगा OTT प्लेटफॉर्म...?
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सिनेमा की दीवानगी के लिए भारत पूरी दुनियां में अलग पहचाना जाता रहा है,अलग अलग धार्मिक मान्यताओं,संस्कृतियों और मान्यताओ में बंटा ये देश सिनेमा और क्रिकेट को लेकर एक जुट हो जाता है। फिल्म इंडस्ट्री इस देश की काफी बड़ी इंडस्ट्री है जो कलाकारों लेखकों निर्देशकों के आलावा करोड़ों लोगों को रोजगार देती है,सिनेमा के कलाकार वैसे तो पूरी दुनियां में ही दर्शकों के चहेते रहें हैं लेकिन यहाँ की दीवानगी के क्या कहने ? किसी कलाकार की तस्वीर से शादी करने से लेकर किसी का मंदिर बनवाने यहाँ तक की देवानद साहब पर तो ब्लैक कोर्ट पहनने तक पर पाबन्दी लगा दी गई थी। एक लम्बे आरसे से सिनेमा लोगो के दिलों पर राज करता आया है। OTT प्लैटफॉर्म के आने के बाद सिनेमा की दुनिया में जबरदस्त बदलाव देखने को मिल रहे है। सिनेमा से तो हम अच्छी तरह से वाकिफ़ है। लेकिन ``OTT`` के बारे में बहुत से लोग नहीं जानते हैं तो सबसे पहले बात करते हैं की OTT असल में है क्या ? OTT एक ऐसा माध्यम है जहाँ इंटरनेट के जरिए किसी विडिओ को दर्शक मांग पर देखा जा सकता है।

इसका फूल फॉर्म है -``ओवर द टॉप``,नेट फलेक्स,मॅक्सप्लयेर,अमेज़न प्रेम अदि सभी OTT प्लेटफॉर्म के नाम से जाने जाते है इन्हे फेमस किया है वेब सीरीज़ ने। सिनेमा के आलावा छोटा पर्दा जिसे हम टेलीविज़न के नाम से जानते है, ने मनोरंजन की दुनियां को लम्बे समय काट बांध के रखने वाली कहानिया जिन्हे हम धारावाहिक या सीरियल कहते हैं दी। जिसके हम अदि भी हो चुके थे और कभी न खत्म होने वाले घटनाक्रमो से बोर भी हो चले थे,और अब सीरियल और फिल्म के बीच की एक नई चीज OTT ने समाने ला दी थी वे-``वेब सरीज़ ``ये 5-8 एपिसोड क जिसका एक एपिसोड लगभग 30-40 मिनिट का होता है। जिसमें एक कसी हुई कहानी बेहतरीन कथानक के साथ दर्शक को अपनी सुवुधानुसार समय पर उपलब्ध करवा दी गई। युवा वर्ग को ध्यान में रखते हुए कई वेब सेरेज़ में अनावश्यक अश्लीलता भी परोसी गई पर ये तो कंटेंट की बात है। बहरहाल सिमित साधनो में अच्छे कथानक और ऊँचे दर्जे के अभिनय के कारण OTT प्लेटफार्म ने बहुत काम समय में कामयाबी हासिल कर ली। जिसने उभरते हुए टलेंटेड कलाकारों को सिनेमा के तथाकथित सितारों के लिए चुनौती के रूप में ला खड़ा किया है। बेशक इसका सीधा प्रभाव सिनेमा पर पड़. रहा है। दर्शकों के पास अब काफी विकल्प हैं,पड़े परदे के चहते सितारों को अब अपनी जगह वापीस हासिल करनी पड़ेगी। बड़े बजट की फिल्मो के लगातार पिटने से काफी लोगों के रोजगार पर देश की इकोनॉमी पर विपरीत असर पड़ रहा है।लेकिन ओटीटी के चलते अब काफी हुनर मंद और संघर्षशील कलाकारों को बेहतर रोजगार के साथ पहचान भी मिली है। साथ ही मुंबई के बहार भी काम शुरू हो पाया है। यदि इसे स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की तरह देखा जाए अब सिनेमा को भी अपने ढर्रे को बदलकर नए रचनत्मक प्रयोग करना चाहिए। जैसे जैसे टेक्नोलॉजी बढ़ रही है एडिटिंग और कैमेरा हाई टेक होते जा रहे हैं वैसे वैसे एक्टिंग की बारीकियां पकड में आने लगी हैं जरा सा भी झोल आम दर्शक आसानी से पकड़ लेता हैं,ऐसे मरे खुद को तरशते रहना कलाकार का काम है।

कलाकार को उसका पद दर्शक ही दिलवाता है ,और अब ओटीटी के आने से दर्शकों के पास अपने समय के अनुसार मनोरंजन पाने की सुविधा आ चुकी हैं। ऐसे में नए तरह की कहानियां काफी पसंद की जा रही हैं। पंचायत और गुल्लक जैसी सीधी साधी वेब सीरीज को दर्शकों का प्रोत्साहन मिला।जिससे साबित होता है की यदि सच में दिल को छू वाले कंटेंट होंगे तो उन्हें कामयाबी जरूर मिलेगी। सस्पैंस थ्रिलर तो हमेशा ही पसंद किये जाते रहे हैं। बहरहाल ओटीटी हो या सिनेमा दर्शकों के पास अब बेहतरीन साधन है।

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