देहरादून: उत्तराखंड सरकार 26 जनवरी से राज्य में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने के लिए पूरी तरह तैयार है। ऐसा करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य बनेगा। राज्य सरकार ने नियमों और कार्यान्वयन समिति की सलाह के बाद कुछ बदलाव किए थे, जिन्हें अब विधायी विभाग द्वारा मंजूरी मिल चुकी है। इस संशोधित कानून को 22 जनवरी तक कर्मचारियों के लिए ब्लॉक-स्तरीय प्रशिक्षण सत्र के बाद धामी कैबिनेट द्वारा पारित किए जाने की संभावना है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पहले ही कहा था कि जनवरी 2025 से पूरे राज्य में समान नागरिक संहिता लागू हो जाएगी।
समान नागरिक संहिता का मतलब है कि देश में सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून होगा, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या लिंग से संबंधित हों। यदि यह कानून लागू होता है तो विवाह, तलाक, बच्चे को गोद लेना, संपत्ति का बंटवारा आदि जैसे विषयों पर हर नागरिक के लिए एक ही कानून होगा। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में यह कहा गया है कि सरकार का दायित्व है कि वह सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करे। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि गोवा पहले से ही पुर्तगाली सिविल कोड के तहत कार्य करता है, जो एक विशेष स्थिति के तहत लागू किया गया था। लेकिन उत्तराखंड आजादी के बाद पहला राज्य होगा जहां समान नागरिक संहिता लागू होगी।
हालांकि, इस कदम के खिलाफ विरोध भी शुरू हो चुका है। मुस्लिम संगठन और कांग्रेस जैसे विपक्षी दल इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। इन दलों का कहना है कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के लिए स्वीकार्य नहीं होगा। कांग्रेस, अपने राजनीतिक लाभ के लिए इसे मुस्लिमों के खिलाफ मान सकती है, जिससे राज्य में तनाव और हिंसा का माहौल बन सकता है। यदि ऐसा होता है, तो यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच सकता है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कई बार UCC लागू करने की बात कही है, लेकिन वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में, खासकर अल्पसंख्यक समुदायों के लिए की जाने वाली राजनीति को देखते हुए, यह संभव है कि सुप्रीम कोर्ट उत्तराखंड सरकार के फैसले पर रोक लगा दे।
अगर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार के फैसले पर रोक लगाई तो यह एक नया संवैधानिक मोड़ हो सकता है, और UCC लागू करने की प्रक्रिया में एक और रुकावट आ सकती है। इस स्थिति में यह भी मुमकिन है कि राज्य में हिंसा और दंगे की स्थिति पैदा हो, जिससे कानून-व्यवस्था की स्थिति और भी जटिल हो सकती है।