बिहार में लोगों की 'जाति' पूछ सकेंगे या नहीं ? पटना HC ने दी अनुमति, तो सुप्रीम कोर्ट में फंसा पेंच

बिहार में लोगों की 'जाति' पूछ सकेंगे या नहीं ? पटना HC ने दी अनुमति, तो सुप्रीम कोर्ट में फंसा पेंच
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नई दिल्ली: पटना उच्च न्यायालय द्वारा बिहार सरकार द्वारा जाति-आधारित सर्वेक्षण को बरकरार रखने के बाद,  इस आदेश को चुनौती देने वाली एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई है। याचिकाकर्ता अखिलेश कुमार ने पटना उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने बिहार जाति सर्वेक्षण की वैधता को चुनौती देने वाली कई जनहित याचिकाओं को खारिज कर दिया था।

उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार की पहल को पूरी तरह से वैध और कानूनी रूप से सक्षम बताया था और लगभग तीन महीने के बाद रुकी हुई प्रक्रिया को फिर से शुरू करने का मार्ग प्रशस्त किया था। पटना हाई कोर्ट ने कहा था कि, “राष्ट्रीय सुरक्षा के अलावा, राज्य के पास डेटा के संग्रह और भंडारण के लिए उचित कारण हो सकते हैं। एक सामाजिक कल्याण राज्य में, सरकार ऐसे कार्यक्रम शुरू करती है जो समाज के गरीब और हाशिए पर रहने वाले वर्गों को लाभ प्रदान करते हैं।'' उच्च न्यायालय ने कहा था कि, यह सुनिश्चित करने में राज्य का महत्वपूर्ण हित है कि संसाधनों को ऐसे व्यक्तियों को हस्तांतरित करके दुर्लभ सार्वजनिक संसाधनों का अपव्यय न किया जाए, जो प्राप्तकर्ता के रूप में योग्य नहीं हैं।

वहीं, एक अलग कदम में, बिहार सरकार ने पहले ही सुप्रीम कोर्ट में एक कैविएट दायर कर दी थी। कैविएट का मतलब है कि दूसरे पक्ष को पहले सुने बिना उसके खिलाफ कोई आदेश जारी नहीं किया जा सकता है और आमतौर पर ऐसा तब किया जाता है जब किसी पक्ष को यह आशंका होती है कि कोई उनके खिलाफ अदालत जाएगा। रोक हटने के साथ ही सर्वेक्षण का दूसरा चरण पूरे जोर-शोर से किया जाएगा, जिसमें सभी लोगों की जाति, उपजाति और धर्म से संबंधित डेटा एकत्र किया जाना है। इसका विरोध इसलिए भी हो रहा है, क्योंकि इसके विरोधियों का कहना है कि, राज्य की नितीश सरकार, जातिगत सर्वे की आड़ में जातिगत जनगणना करेगी और फिर उन आंकड़ों का इस्तेमाल चुनाव में लोगों को लुभाने के लिए करेगी, जिससे वास्तविक पात्र लाभ से वंचित रह जाएंगे। जैसे, जिस जाति के अधिक वोटर होंगे, उन्हें लुभाने के लिए राज्य सरकार कुछ आकर्षक योजनाएं चला सकती हैं, जिससे जो वास्तविक में जरूरतमंद लोग हैं, वो रह जाएंगे। साथ ही इसका विरोध करने वालों द्वारा यह भी आशंका जताई जा रही है कि, इससे समाज में विभाजन पैदा होगा और जातिवाद को बढ़ावा मिलेगा, विरोधियों का कहना है कि, सरकार जातिगत सर्वे करने की जगह, आर्थिक सर्वे कर सकती है, यदि वो वंचितों को लाभ ही देना चाहती है। 
 
बता दें कि, जाति सर्वेक्षण का फैसला गत वर्ष बिहार कैबिनेट ने लिया था।बिहार में जाति सर्वेक्षण दो चरणों में किया जाना था। पहला चरण, जिसके तहत घरेलू गिनती का अभ्यास किया गया था, इस साल जनवरी में राज्य सरकार द्वारा आयोजित किया गया था। सर्वेक्षण का दूसरा चरण 15 अप्रैल को शुरू हुआ, जिसमें लोगों की जाति और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों से संबंधित डेटा इकट्ठा करने पर ध्यान केंद्रित किया गया। पूरी प्रक्रिया इस साल मई तक पूरी करने की योजना थी। हालांकि, 4 मई को हाई कोर्ट ने जाति सर्वेक्षण पर रोक लगा दी थी।

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