श्रीनगर: 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में NDA ने भारी बहुमत से केंद्र में सत्ता हासिल की। उनकी सरकार का पहला बड़ा कदम जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाना था, जिसने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया था। इसके बाद, जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया। इस निर्णय के बाद, कांग्रेस पार्टी ने इसका विरोध किया, लेकिन अब वह जम्मू-कश्मीर के आगामी विधानसभा चुनावों के लिए नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ गठबंधन कर रही है। यह वही पार्टी है जो अक्सर अलगाववादी शक्तियों का समर्थन करती है और पाकिस्तान के साथ संबंधों को बढ़ावा देने की वकालत करती है।
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— JKNC (@JKNC_) August 19, 2024
हाल ही में, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने श्रीनगर का दौरा किया, जहां उन्होंने जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की बात कही और कश्मीरियों से अपने "खून का रिश्ता" बताया। इसके बाद उन्होंने नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला से मुलाकात की, और दोनों पार्टियों ने मिलकर चुनाव लड़ने की घोषणा की। इस गठबंधन में माकपा भी शामिल होगी। इससे पहले भी कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस का साथ रहा है, लेकिन इस बार स्थिति अलग है। नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने पार्टी का घोषणा पत्र जारी किया, जिसमें अनुच्छेद 370 और 35A की बहाली, 2019 से पहले की स्थिति में राज्य का दर्जा बहाल करना, और केंद्र सरकार के विभिन्न कानूनों को बदलने की बात की गई है। इसके अलावा, घोषणा पत्र में आतंकवाद के आरोपों में जेल में कैद आरोपियों को माफी देने, बाहरी लोगों पर भूमि और रोजगार के अधिकारों पर प्रतिबंध लगाने, और पाकिस्तान के साथ बातचीत को बढ़ावा देने जैसे वादे भी किए गए हैं।
घोषणा पत्र की ये बातें भारत सरकार की नीतियों के विपरीत हैं और जम्मू-कश्मीर में विकास और सुरक्षा की दिशा में हुए प्रयासों को वापस ले जाने का संकेत देती हैं। कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस का यह गठबंधन न केवल भारतीय राजनीति में विवाद का कारण बन सकता है, बल्कि जम्मू-कश्मीर की जनता के बीच भी इसके प्रभाव को लेकर सवाल खड़े कर सकता है। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव तीन चरणों में 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को होंगे, और परिणाम 4 अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे। चुनाव में 90 विधानसभा सीटों पर मतदाता अपने प्रतिनिधियों का चयन करेंगे।
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आज उसी प्रस्ताव का विरोध कर रही कांग्रेस, जिसे लेकर आए थे मनमोहन सिंह, 2011 में होना था लागू !