धार: आज हम आपको एक ऐसी महिला के बारे में बताने वाले है. जिसने पुरे गांव की सोच को ही परिवर्तित कर डाला है. रूढ़ीवादी और परपंरागत सोच को एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने बदल कर रख दिया है. बदलाव में लगभग पांच से छह साल लग गए. अब हर प्रसव घर में नहीं, सुरक्षित तरीके से अस्पताल में हो रहे हैं. बीते छह सालों की बात करें तो करीब उसके क्षेत्र में एक भी प्रसव घर पर नहीं हुआ है. 158 परिवारों की जिम्मेदारी है. 22 साल में अपने क्षेत्र में बदलाव किया. अब सास भी अपनी बहू-बेटी की चिंता करती और बच्चों का जन्म अस्पताल में ही करवाया जाता है.
कहानी 40 साल की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता राजूबाई की है. जो देलमी में 158 परिवार की जिम्मेदारी संभालती है. 1998 में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता बनी. देलमी में केंद्र क्रमांक एक संभालने वाली राजूबाई ने बताया कि प्रारम्भ में घर पर प्रसव को लेकर समझाना मुश्किल होता है. खासकर बुजुर्ग महिलाएं व सास की सोच में बदलाव लाना. वे कहती थीं कि हमने अपने जमाने में कभी अस्पताल नहीं देखा. हमारा प्रसव सुरक्षित हुआ है. अस्पताल जाने की जरूरत क्या है. करीब पांच साल तक अपनी टीम के साथ घर-घर जाकर महिलाओं को समझाया, इसके पश्चात् स्थिति बदली. बीते छह सालों की बात करें तो एक भी प्रसव घर नहीं हुआ है. सभी जिला अस्पताल में सुरक्षित होते हैं. 1998-99 की बात करें तो राजूबाई के इलाके में 39 प्रसव घर पर हुए थे. जबकि एक प्रसव अस्पताल में करवाया गया था. 2014 के बाद उनके इलाके में एक भी प्रसव घर नहीं हुआ है. राजूबाई ने बताया कि हमने सुरक्षित प्रवस होने के साथ ही उन्हें योजनाओं के लाभ के बारे में बताया. गांव की दुर्गाबाई ने बताया कि वे अपनी बहू की अस्पताल में प्रसव करवाएंगी.
राजूबाई ने यह जानकारी देते हुई बताया कि ग्रामीण इलाकों में महिलाओं की सोच बदलने में काफी दिक्कते आती है. उनके साथ जुड़ना होता है. उनकी मालवी भाषा में संवाद करते हैं. उससे उन्हें अपनापन लगता है और वे हमारी बात मानती हैं. क्षेत्र के लोगों ने बताया कि राजूबाई का दिमाग हार्ड डिस्क की तरह है. वह कुपोषित बच्चों के नाम के साथ उनके जन्म समेत अन्य डाटा मुंह जुबानी याद रखती हैं. राजूबाई ने बताया कि हम कुपोषण और टीकाकरण को लेकर शत-प्रतिशत रिजल्ट देने का काम करते हैं.
वहीं, जिला अस्पताल के एसएनसीयू में कई लावारिस नवजात बच्चों भर्ती करवाया जाता है. कई अंजान बच्चों पर यूनिट की नर्स ही मां के रूप में ममता की स्नेह बिखेरती हैं. नवजात को अपने बच्चों की तरह देखभाल से लेकर उन्हें लाड़-दुलार करती हैं. नर्स रेखा चौहान, चित्राक्षी दामके, अनु अमलियार, देवकन्या सिंगारे, नर्मता टाकले, पूजा, पल्लवी और कविता ने यह बताया कि अंजान बच्चे यहां आते हैं. हमारे लिए परिवार का हिस्सा होते हैं. जन्म के पश्चात् बच्चों को फेंकने में उस बच्चे का क्या कसूर है. डॉक्टर जमरा ने यह बताया कि हमारी टीम ऐसे अंजान व लावारिस बच्चों की परिवार की तरह से स्नेह देकर देखभाल करती है. उनकी इस सोच ने कई बच्चो को नया जीवन प्रदान किया हैं. हमारे देश को इस तरह की सोच की आवश्यकता हैं.
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