'सड़क पर लेटीं महिलाएं, ऊपर पैर रख गुजरे पुरुष', जानिए क्या है मामला?

'सड़क पर लेटीं महिलाएं, ऊपर पैर रख गुजरे पुरुष', जानिए क्या है मामला?
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धमतरी: छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में प्रत्येक वर्ष आयोजित होने वाला परंपरागत देव मड़ई मेला क्षेत्र की सांस्कृतिक तथा धार्मिक धरोहर का प्रतीक बन चुका है। यह मेला विशेष रूप से आदिवासी समुदाय की धार्मिक परंपराओं को जीवित रखने का एक माध्यम है, जिसमें भक्तों का विशाल समुदाय हिस्सा लेता है। इस मौके पर, आसपास के सभी देवी-देवता, डांग डोरी, बैगा, सिरहा, एवं गायता पुजारी एक साथ आकर सामूहिक रूप से इस मेलें का आयोजन करते हैं। यह मेले की एक विशेष परंपरा है, जो क्षेत्रवासियों के बीच गहरी श्रद्धा और विश्वास को दर्शाती है।

संतान प्राप्ति के लिए विशेष रिवाज:
मेले का एक प्रमुख हिस्सा है "परण", जिसमें संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाली महिलाएं विशेष रूप से हिस्सा लेती हैं। इस अवसर पर, महिलाएं मां अंगारमोती के मंदिर में जाती हैं तथा संतान के लिए आशीर्वाद प्राप्त करने की प्रार्थना करती हैं। परंपरा के अनुसार, महिलाएं पेट के बल लेटकर बैगा जनजाति के लोगों के ऊपर से गुजरने का इंतजार करती हैं। माना जाता है कि जिन महिलाओं के ऊपर से बैगा का पैर गुजरता है, उन्हें देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है तथा उनकी गोद भर जाती है। यह एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मान्यता है, जो इस इलाके के आदिवासी समुदाय में बहुत सम्मानित मानी जाती है।

मेले के चलते, महिलाएं पूजा सामग्री जैसे नींबू, नारियल, और अगरबत्ती लेकर खुले स्थान पर पेट के बल लेट जाती हैं, जबकि बैगा जनजाति के लोग उनके ऊपर से होकर गुजरते हैं। इस के चलते  बैगा खास तौर पर देवी के रूप में प्रकट होते हैं, जिनकी उपस्थिति पूजा की गंभीरता और शक्ति को प्रतीकित करती है। इस अनुष्ठान को श्रद्धा और विश्वास का रूप माना जाता है।

दीवाली के बाद हुआ मेला आयोजन
देव मड़ई मेला हमेशा दिवाली के पश्चात् पहले शुक्रवार को आयोजित होता है, जो क्षेत्रवासियों के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण दिन होता है। इस दिन में 52 गांवों के देव विग्रहों की पूजा की जाती है। आदिशक्ति मां अंगारमोती ट्रस्ट के अध्यक्ष जीवराखन मरई बताते हैं कि मां अंगारमोती गोंड़ों की कुल देवी मानी जाती हैं। उनका वास स्थान पहले महानदी के किनारे और आसपास के कुछ गांवों के सीमा क्षेत्र में था। यह स्थान सदियों से श्रद्धा एवं आस्था का केंद्र रहा है, जहां गोंड़ समाज के लोग नियमित रूप से पूजा और सेवा करते थे।

सदियों पुरानी परंपरा के मुताबिक, दीवाली के बाद के पहले शुक्रवार को देव मड़ई मेला का आयोजन किया जाता है, जो अब गंगरेल में पुनर्स्थापित किया गया है। गंगरेल बांध बनने के पश्चात् इस क्षेत्र के अधिकांश लोग विस्थापित हो गए थे, किन्तु पूजा और परंपराओं का निर्वाह आज भी उसी श्रद्धा और धरोहर के साथ किया जाता है।

निसंतान महिलाएं मन्नतों के साथ पहुंचती हैं मां के दरबार में
इस मेले में बड़े आंकड़े में निसंतान महिलाएं विशेष रूप से भाग लेती हैं। भक्तों का विश्वास है कि मां अंगारमोती की कृपा से निसंतान महिलाएं संतान सुख प्राप्त कर सकती हैं। महिलाएं इस दिन मां के दरबार में पहुंचकर विशेष पूजा अर्चना करती हैं और परण अनुष्ठान का पालन करती हैं। यहां की मान्यता के अनुसार, माता स्वयं सिरहा के शरीर में प्रवेश कर मेला स्थल का भ्रमण करती हैं, और उनके इस रूप में पूजा करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

गंगरेल के मेला स्थल पर हर साल सैकड़ों महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए मां अंगारमोती की पूजा करती हैं। वे मंदिर के सामने हाथों में पूजा सामग्री लेकर कतार में खड़ी रहती हैं और जो महिलाएं जमीन पर पेट के बल लेटी होती हैं, उनके ऊपर से बैगा गुजरते हैं। इस दौरान श्रद्धालुओं की गहरी श्रद्धा और विश्वास दिखाई देता है, जबकि ढोल-नगाड़ों की ध्वनि माहौल को और भी भव्य बना देती है।

दंडवत लेटी महिलाएं, दौड़ते चले गए बैगा
इस दिन 300 से अधिक महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए मन्नत मांगने पहुंची। महिलाएं मंदिर के सामने हाथ में नारियल, अगरबत्ती, तथा नींबू लेकर कतार में खड़ी थीं। जमीन पर लेटी महिलाओं के ऊपर से बैगा चलते हुए निकले। कहा जाता है कि यहां वे सभी बैगा भी आते हैं, जिन पर देवी सवार होती हैं। वे झूमते-झूपते थोड़े बेसुध से मंदिर की तरफ बढ़ते हैं। चारों ओर ढोल-नगाड़ों की गूंज रहती है। बैगाओं को आते देख, कतार में खड़ी सारी महिलाएं पेट के बल दंडवत लेट गईं तथा बैगा उनके ऊपर से गुजरते हुए चले गए।

52 गांवों की देवी, ये है मान्यता
प्राचीन कथाओं के मुताबिक, माता अंगारमोती 52 गांवों की देवी मानी जाती हैं। इन गांवों के लोग किसी भी परेशानी या समस्या के समय मां अंगारमोती के पास जाकर मन्नत मांगते हैं तथा मन्नत पूरी होने पर शुक्रवार को विशेष पूजा कराते हैं। विशेषकर निसंतान महिलाएं मातृसुख के लिए मां के दरबार में फरियाद लेकर पहुंचती हैं तथा माता उन्हें अपना आशीर्वाद देती हैं।

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