नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने कामकाजी महिलाओं और छात्राओं को मासिक धर्म के दौरान पेड लीव देने की मांग करने वाली याचिका को आज शुक्रवार (24 फरवरी) को खारिज कर दिया। प्रधान न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ ने सुनवाई के दौरान कहा कि यह सरकारी नीति से जुड़ा हुआ मामला है। इस प्रकार के मामले में कोई भी निर्देश देने का अर्थ ये होगा कि महिलाओं की भर्ती में समस्या आएगी। लोग उन्हें नौकरी देने से कतराएंगे। कोर्ट ने कहा कि बेहतर यह होगा कि याचिकाकर्ता इस बारे में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से संपर्क करें। लिहाजा, यह याचिका खारिज की जाती है।
बता दें कि, दिल्ली निवासी शैलेंद्र मणि त्रिपाठी ने यह याचिका दाखिल की थी। इस याचिका में मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 की धारा 14 के अनुपालन के लिए केंद्र व सभी राज्य सरकारों को छात्राओं और कामकाजी महिलाओं के लिए उनके संबंधित कार्यस्थलों पर मासिक धर्म के दौरान पेड लीव प्रदान करने का निर्देश देने की माँग की गई है। याचिका में कहा गया है कि पीरियड्स के दौरान महिलाओं और छात्राओं को कई किस्म की शारीरिक और मानसिक दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इस दौरान उन्हें और भी कई प्रकार समस्याएं आती हैं। ऐसे में उनको पीरियड्स लीव दिए जाने को लेकर आदेश पारित करना चाहिए।
याचिका में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन द्वारा की गई एक रिसर्च का भी हवाला दिया गया था, जिसमें कहा गया है कि एक मासिक धर्म में महिलाओं को हार्ट अटैक आने जितना दर्द महसूस होता है। साथ ही याचिका में यह भी कहा गया है कि यूनाइटेड किंगडम, चीन, वेल्स, जापान, ताइवान, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, स्पेन और जाम्बिया जैसे देशों में पीरियड्स लीव देने का प्रावधान है। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से संपर्क करने की बात कहकर याचिका ख़ारिज कर दी।
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