लखनऊ: उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के देवबंद में स्थित दारुल उलूम के प्रिंसिपल और जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत के उस बयान का समर्थन किया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत के हिन्दुओं एवं मुस्लिमों के पूर्वज एक ही हैं। मदनी ने कहा कि RSS का पुराना रुख अब बदल रहा है और वो सही रास्ते पर है। उन्होंने कहा कि मुस्लिमों को अपने देश से प्रेम है।
किन्तु, साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि आतंकवाद के जिन मामलों में मुस्लिम पकड़े जाते हैं, उनमें से ज्यादातर झूठे होते हैं। मीडिया के साथ बात करते हुए मौलाना अरशद मदनी ने पूछा कि यदि यह सब सच्चे हैं तो फिर निचली अदालत से सजा मिलने के बाद उच्च न्यायालय या फिर शीर्ष अदालत से लोग कैसे बरी हो जाते हैं? उन्होंने बताया कि उनके संज्ञान में ऐसे कई मामले आई हैं, जहाँ लोअर कोर्ट से फाँसी पाए लोगों को शीर्ष अदालत ने बरी किया।
मौलाना अरशद मदनी ने आगे कहा कि, 'देश में एक लाख से अधिक मस्जिदें हैं, जहाँ 5 वक्त की अजान दी जाती है और 5 वक्त की नमाज अता भी की जाती है। हमें प्रत्येक मस्जिद के लिए इमाम चाहिए। इन मस्जिदों में जो बच्चे आते हैं, उनको शिक्षा देने के लिए मौलवी चाहिए, वरना हमारी मस्जिदें वीरान हो जाएँगी। यह हमारा निसाब-ए-तालीम है, जो खालिस मजहबी है। हम छात्रों को अध्यापक, अधिवक्ता या डॉक्टर नहीं बनाते। हम उनको खालिस मजहबी इंसान बनाते हैं, जो नमाज पढ़ाए, मजहबी तालीम दे।' महिलाओं की शिक्षा पर मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि महिलाओं को मुजाहिद बनाने का उद्देश्य तो न पहले कभी हमारा था और न आज है। उन्होंने कहा कि कई स्कूल-कॉलेज खुले भी, आज लड़कियाँ काफी मजहबी शिक्षा ले रही हैं, मगर दारुल उलूम के अंदर लड़कियों को पढ़ाने का हमने कभी मन नहीं बनाया। उन्होंने इस्लामी कानून शरिया का हवाला देते हुए कहा कि महिलाएँ मर्दों से अलग रह कर ही शिक्षा ग्रहण कर सकती हैं। साथ ही बताया कि मर्दों के साथ पढ़ने से औरतों के भटकने का खतरा है, इसीलिए महिलाएं वहाँ नहीं जा सकतीं।
मदनी ने कहा कि महिलाएँ जो भी पेशा चुनें, उसमे परदा होना जरुरी है। उन्होंने शरिया का हवाला देते हुए कहा कि महिलाओं की आँखों व चेहरे के अतिरिक्त कुछ नहीं दिखना चाहिए। मौलाना अरशद मदनी ने महिलाओं के खिलाड़ी बनने पर आपत्ति जाहिर करते हुए कहा कि औरतों को ऐसा कोई भी कार्य करने की इजाजत नहीं है, जिसमें उनका भागना-दौड़ना कोई मर्द देखे। बता दें कि इससे पहले उन्होंने कहा था कि यदि तालिबान गुलामी की जंजीरों को तोड़कर आजाद हो रहे हैं, तो इसे आतंकवाद नहीं कहेंगे। उन्होंने ये भी कहा था कि महिलाएँ बगैर क्रीम, लिपस्टिक लगाए, बुर्का पहन कर बाहर औकर विरोध कर सकती हैं।
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