उज्जैन/ब्यूरो। देश की राजनीती में ऐसे कई मामले सामने आते है। जहा महिला प्रतिनिधि चुनाव तो लड़ती है और जीत भी जाती है लेकिन जब बारी अपनी जिम्मेदारी और काम को करने की आती है। तो उनके पति या परिवार के किसी सदस्य का हस्तक्षेप दिखाई पड़ता है। जिसके चलते जनप्रतिनिधि के पति सरकारी काम काज में दखल देने पहुँच जाते है और अपना रौब झाड़ते है।
बात करे उज्जैन नगर निगम की तो उज्जैन में 54 में से 29 महिला पार्षद हैं। अधिकांश महिला पार्षदों का कामकाज उनके पति, पुत्र या परिजन संभाल रहे हैं। नगर निगम के कामकाजों में महिला पार्षदों के रिश्तेदारों के दखल से विवाद की स्थिति भी निर्मित हो जाती है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि असल में आरक्षण का फायदा किसको मिल रहा है। इस मामले पर नगर निगम अध्यक्ष कलावती यादव का कहना है कि महिला पार्षद को सरकार ने वैधानिक अधिकार और मतदाताओं ने अवसर दिया है। इनके कार्य में किसी का हस्तक्षेप उचित नहीं है। मैं इस प्रवृत्ति के पक्ष में नहीं हू , पिछले दिनों जोन एक की समीक्षा बैठक में स्पष्ट तौर पर बताया था कि बैठक में महिला पार्षद के साथ या उनके प्रतिनिधि के तौर पर अन्य किसी को शामिल नहीं होने दिया जाएगा।
कुछ दिन पूर्व ही उज्जैन शहर में वर्षा के चलते महापौर आगर रोड की कॉलोनियों में जलभराव की स्थिति का निरीक्षण करने भी गए थे। इस दौरान क्षेत्र की महिला पार्षद के पूर्व पार्षद पिता मांगीलाल कड़ेल पूरे समय दौरे में शामिल तो रहे, आम-नागरिकों और अधिकारियों की चर्चा में भी हस्तक्षेप करते रहे। पूर्व में ऐसे मामले पंचायतों में देखने को मिलते थे जिसके बाद महिलाएं केवल मुहर बनकर रह गई थी। इसे देखते हुए पंचायत व ग्रामीण विकास विभाग को अलग से आदेश जारी करना पड़ा। इसमें कहा गया कि जनप्रतिनिधियों के पति या रिश्तेदार बैठकों में नहीं आ सकेंगे। इस मामले में मप्र नगरपालिका अधिनियम 1961 एवं नगर निगम में 1958 में प्रतिनिधि संबंधित प्रावधान का कोई उल्लेख नहीं है।
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