जल ही जीवन है, जल है तो कल है. दशकों में तीव्र नगरीकरण एवं आबादी में निरंतर हो रही बढ़ोत्तरी ने प्रकृति के इस भंडार को प्रदूषित कर दिया है . प्रदूषकों की बढ़ती मात्रा से जल की गुणवत्ता कम हो रही है. अनियमित वर्षा, सूखा एवं बाढ़ जैसी आपदाओं ने भूमिगत जल पुनर्भरण को काफी प्रभावित किया है. विकास की अंधी दौड़ में औद्योगिक गतिविधियों ने गंगा, यमुना, गोदावरी, कावेरी, नर्मदा एवं कृष्णा को प्रदूषित कर बर्बादी की कगार पर खड़ा कर दिया है.
जल में व्यापक रूप में पाए जाने वाले कार्बनिक एवं अकार्बनिक रसायनों, रोगजनकों, भौतिक अशुद्धियों और तापमान वृद्धि जैसे संवेदी कारकों को जल प्रदूषकों में शामिल किया जाता है. तो जानिए आप भी जल प्रदूषण के प्रमुख कारण --
+ औद्योगिक कचरों तथा कार्बनिक विषाक्त पदार्थों सहित अन्य उत्पादों का जलस्रोतों में डाला जाना
+ कारखानों से वाहित अपशिष्ट में उपस्थित विभिन्न प्रकार के हानिकारक रासायनिक पदार्थ एवं भारी धातुएँ
+ रिफाइनरियों एवं बंदरगाहों से रिसे पेट्रोलियम पदार्थ एवं तेलयुक्त तरल द्रव्य
+ शहरों, नगरों तथा मलिन बस्तियों से निकले अनुपचारित घरेलू बहिर्स्राव, मलजल एवं ठोस कचरे इत्यादि
+ व्यावसायिक पशुपालन उद्यमों, पशुशालाओं एवं बूचड़खानों से उत्पन्न कचरों का अनुचित निपटान
+ कृषि क्रियाओं से उत्पन्न जैविक अपशिष्ट, उर्वरकों और कीटनाशकों के अवशेष इत्यादि
+ गर्म झील धाराएँ विभिन्न संयंत्रों की प्रशीतन इकाइयों से निकले गर्म जल
+ प्राकृतिक क्षरणयोग्य चट्टानों के अवसाद तलछट, मिट्टी पत्थर तथा खनिज तत्व इत्यादि
+ परमाणु गृहों से उत्पन्न रेडियोधर्मी पदार्थ का गिरना
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