मेलबर्न: ग्लोबल वार्मिंग दुनिया के लिए सबसे बड़ी समस्या बन गई है. कहीं अत्याधिक गर्मी पड़ रही है तो कहीं सामान्य से बहुत अधिक वर्षा हो रही है. इसका सबसे ज्यादा प्रभावित दुनिया के गरीब देश होंगे.यह बात एक अध्ययन में सामने आई है. पेरिस समझौते में यह सीमा 1.5 डिग्री या दो डिग्री सेल्सियस तक तय की गई है. यदि तापमान में इतनी वृद्धि होती है तो भी इसका असर गरीब देशों पर देखने को मिलेगा.
जियोफिजिकल रिसर्च लैटर्स नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में जलवायु परिवर्तन के अमीर और गरीब देशों पर पड़ने वाले प्रभाव की तुलना की गई है. ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ मेलबर्न के एंड्रयू किंग के मुताबिक, यह परिणाम ग्लोबल वार्मिंग के साथ आने वाली असमानताओं का उदाहरण है. वह आगे कहते हैं, हैरत की बात यह है कि तापमान में दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने पर सबसे ज्यादा ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करने वाले अमीर देशों पर इसका सबसे कम असर होगा. गरीब देश इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे, जिनकी ग्लोबल वार्मिंग में सबसे कम भूमिका है.
शोधकर्ताओं के मुताबिक, सबसे कम प्रभावित वे देश होंगे जहां तापमान न तो ज्यादा गर्म होता है और न ठंडा (टेंपरेट क्षेत्र)। इनमें सबसे आगे ब्रिटेन है. इसके विपरीत भूमध्यवर्ती क्षेत्र के देश जैसे कांगो ग्लोबल वार्मिंग से सर्वाधिक प्रभावित होंगे. उष्णकटिबंधीय क्षेत्र से बाहर के इलाकों में वार्मिंग के प्रभाव का उतना पता नहीं चलेगा. हालांकि भूमध्यवर्ती इलाके, जहां पहले से औसत तापमान काफी अधिक होता है और सालभर तापमान में ज्यादा बदलाव नहीं होता वहां पर जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में थोड़ा भी बदलाव होने पर एकदम से महसूस होगा और इसका तत्काल प्रभाव भी पता चलेगा.
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