वनों की अवैध कटाई ने पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाया है. वषों से हो रही लगातार अवैध कटाई ने जहां मानवीय जीवन को प्रभावित किया है तो वहीं असंतुलित मौसम चक्र को भी जन्म दिया है. वनों की अंधाधुंध कटाई होने के कारण देश का वन क्षेत्र घटता जा रहा है जो पर्यावरण की दृष्टि से अत्यंत चिंताजनक है. पर्यावरण और वनों के संरक्षण के उद्देशार्थ वन दिवस हर साल 21 मार्च मनाया जाता है जिसकी शुरुआत वर्ष 1971 में यूरोपीय कृषि परिसंघ की 23वीं महासभा द्वारा की गयी थी पर भारत में वन दिवस की शुरूआत 1950 में ही शुरू हो गयी थी. देश में वनों की कटाई रोकने के लिए 'चिपको आंदोलन' की महत्वपूर्ण भूमिका रही है.
आइये जानते हैं क्या था चिपको आंदोलन ?
व्यावसाय के उद्देश्य से निरंतर की जा रही वनों की कटाई को रोकने के लिए देश में एक महत्वपूर्ण आंदोलन किया गया था और इसे रोकने के लिए महिलाएँ वृक्षों से चिपककर खड़ी हो गई थीं जिससे इसका नाम 'चिपको आंदोलन' पड़ा. 26 मार्च, 1974 को पेड़ों की कटाई रोकने के लिए 'चिपको आंदोलन' अभियान शुरू किया गया था.
कैसे हुई शुरुआत ?
बता दें कि उस साल जब उत्तराखंड के रैंणी गाँव के जंगल के लगभग ढाई हज़ार पेड़ों को काटने की नीलामी हुई जिसका विरोध गौरा देवी नामक महिला ने अन्य महिलाओं के साथ किया था पर इसके बावजूद सरकार और ठेकेदार के निर्णय में बदलाव नहीं आया. जब ठेकेदार के आदमी पेड़ काटने पहुँचे तो गौरा देवी और उनके 21 साथियों ने उन लोगों को समझाने की कोशिश की. जब उन्होंने पेड़ काटने की जिद की तो महिलाओं ने पेड़ों से चिपक कर उन्हें ललकारा कि पहले हमें काटो फिर इन पेड़ों को भी काट लेना अंतत: ठेकेदार को जाना पड़ा. बाद में स्थानीय वन विभाग के अधिकारियों के सामने इन महिलाओं ने अपनी बात रखी. फलस्वरूप रैंणी गाँव का जंगल नहीं काटा गया और इस प्रकार यहीं से "चिपको आंदोलन" की शुरुआत हुई.
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