आज World Hepatitis डे है। हेपेटाइटिस के फैलने का मुख्य कारण गंदगी है। सरकार ने हेपेटाइटिस वायरल के खिलाफ नेशनल एक्शन प्लान बनाया था। इसके बाद 2018 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य अभियान के तहत नेशनल वायरल हेपेटाइटिस कंट्रोल प्रोग्राम (एनवीएचसीपी) शुरू किया गया था। ऑनकक्वेस्ट लेबोरेट्रीज के सीओओ डॉ. रवि गौड़ के मुताबिक, "इस एनवीएचसीपी में दो अहम बातें थी और उन्हें लागू भी किया गया। इसमें हमें ऐसे लोगों का निशुल्क इलाज करना था, जिन्हें हेपेटाइटिस होने का शक था या जो इससे जूझ रहे थे। इनका निशुल्क उपचार कर आजीवन निशुल्क दवाई उपलब्ध कराई जाएगी। साथ ही हेपेटाइटिस की रोकथाम के लिए सभी आवश्यक कदम जैसे, एनवीएचसीपी को प्रमोट करना, गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण करना, वायरस के प्रसार के बारे में जनजागरूकता फैलाना आदि निवारक उपाय किए जाने थे। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर, सेकेंडरी सेंटरों और उच्च स्तर के केंद्रों पर आवश्यक कदम उठाने की आवश्यकता थी। मुझे यकीन है कि वर्ष 2030 तक, हेपेटाइटिस-सी के मरीजों को इससे छुटकारा दिलाने और इस वायरस की मौजूदगी को घटाने का लक्ष्य पूरा कर लिया जाएगा।"
हेपेटाइटिस ए और ई के प्रमुख कारण और बचाव
डॉ. गौड़ का कहना है, "वायरल हेपेटाइटिस-ए और ई स्वच्छता के खराब उपायों के कारण गंभीर बनता है। यह आमतौर पर जल और भोजन जनित बीमारियां होती हैं। यही वो बात है, जहां स्वच्छ भारत अभियान मदद करेगा, क्योंकि यह खुले में शौच को रोकता है। शौच किसी भी संक्रमण का वाहक होता है। लोग इससे संक्रमित हो जाते हैं, वे अपने हाथ ठीक से नहीं धुलते, मैला ढोने वाले को ठोस अपशिष्ट, सीवर लाइनों और दूषित पानी के संपर्क में रहना पड़ता है। ये सब हेपेटाइटिस-ए और ई के अहम कारण हैं।"
हेपेटाइटिस बी और सी के संक्रमण की वजह और बचाव
दूसरी तरफ, हेपेटाइटिस-बी और सी एक चुनौती हैं, क्योंकि ये आईवी फ्लूअड, सुई चुभोने के कारण होते हैं। डॉ. गौड़ के मुताबिक, सर्जरी के दौरान यदि मरीज को हेपेटाइटिस-बी है और उसका खून किसी अन्य के साथ बदला जाता है या ब्लड ट्रांसफ्यूजन किया जाता है, तब वे संक्रमण फैल सकता है। यह सेक्स से होने वाले संक्रमण से भी हो सकता है। संक्रमित गर्भवती मां से उसके पैदा होने वाले बच्चे में भी इसका संक्रमण पहुंच सकता है। अपने हाथों को अच्छे से धुलें, ग्लव्स पहनें और स्वच्छता का स्तर सही तरीके से बनाए रखें।" लोगों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उन्हें लगाए जा रहे इंजेक्शन पूरी तरह सुरक्षित हैं। भारत में इंजेक्शन लगाने के असुरक्षित तरीकों ने 2.1 करोड़ लोगों में हेपेटाइटिस-बी (वैश्विक आंकड़े का 32%) और 20 लाख में हेपेटाइटिस-सी (वैश्विक आंकड़े का 40%) संक्रमण को बढ़ावा दिया है। डॉ. गौड़ का कहना है, "ये गाइडलाइंस सुरक्षाकर्मियों, लैब कर्मियों के लिए थीं कि वे हेपेटाइटिस-बी का टीकाकरण कराएं और नियमित निगरानी करें, जिससे पर्याप्त सुरक्षा बरती जा सके। दस्ताने पहनें और मास्क लगाएं, ताकि स्टाफ के जरिए कोई संक्रमण मरीज या किसी अन्य में न जाए। हर एक को हेपेटाइटिस फैलने से रोकने के लिए इन उपायों पर जरूर अमल करना चाहिए।" डॉ. गौड़ के मुताबिक, ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में लोगों का मानना है कि हेपेटाइटिस-बी और सी ताउम्र रहता है और पीड़ित व्यक्ति एक अपशगुन माना जाता है। लेकिन सच बात यह है कि यह बीमारी पूरी जिंदगी नहीं रहती है और यदि सही इलाज किया जाए तो इसे ठीक किया जा सकता है। यही कारण है कि सभी स्वास्थ्य उपाय गोपनीय रहने चाहिए। यदि आप सही इलाज कराते हैं तो हेपेटाइटिस-बी को 100 प्रतिशत ठीक किया जा सकता है, जो सही कदम नहीं उठाए जाने पर गंभीर बन सकती है। यदि आप सही तरीके से आराम करें और सही दवाई लें तो हेपेटाइटिस-ए और ई की बीमारी 4-5 हफ्ते में ही ठीक हो जाती है। सभी तरह के वायरस संक्रमण में पर्याप्त आराम की आवश्यकता होती है और इसे एंटीवायरल दवाओं द्वारा ठीक किया जा सकता है, जो अब आसानी से उपलब्ध हैं। हेपेटाइटिस-सी बहुत आम नहीं है और भारत में हेपेटाइटिस-डी की बीमारी होना बहुत दुर्लभ बात है।"
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