आप सभी को बता दें कि आज वर्ल्ड म्यूजिक डे है. ऐसे में पद्म पुराण में उल्लेखित है कि ब्रह्मा जी ने प्रकृति की रचना कर नदी, पहाड़, झरने, पर्वत श्रृंखलाएं, हरे-भरे वृक्ष, रंग-बिरंगे फल-फूल, तितलियां, पशु-पक्षी, जल एवं जलीय जीव जंतु की उत्पत्ति तो कर दी लेकिन इसके बिना भी ब्रह्मा जी को महसूस हुआ कि अभी भी कुछ अधूरा है. उसके बाद भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी से अपने कमंडल का जल पृथ्वी पर छिड़कने को कहा. इसके बाद जल छिड़कते ही सफेद हंस पर बैठी हाथों में वीणा लिये सरस्वती जी प्रकट हुईं. कहा जाता है सरस्वती जी द्वारा वीणा की तार छेड़ते ही प्रकृति में सुर लहरियां तैर गई. जल की कलरव, पक्षियों की चहचहाहट, झरनों का शोर उभरा और मानों प्रकृति को संगीत की संजीवनी मिल गयी हो.
इससे जीवन में संगीत की अहमियत का अहसास होता है, और सनातन धर्म से नृत्य, कला, योग के साथ-साथ संगीत का भी गहरा संबंध रहा है. इसी के साथ हमारे वेद पुराणों में उल्लेखित है कि ध्वनि की उत्पत्ति के पश्चात ही प्रकृति अपनी संपूर्णता को प्राप्त कर सकी थी और ब्रह्मा ने ब्रह्मांड की रचना के साथ ही सरस्वती का आह्वान किया था. हमारे चारों वेद, स्मृति पुराण एवं गीता जैसे पावन ग्रंथों में अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष को साधने में संगीत को भी महत्वपूर्ण माना गया है. आदिकाल से लेकर आज तक हमारे देश में संगीत को आत्मा के सबसे करीब माना जाता है.
संगीत हमारी प्राचीनतम धरोहर - आप सभी जानते ही होंगे कि भारत में प्राचीनकाल से ही संगीत की संस्कृति फल-फूल रही है और हमारे पुराणों में वर्णित हमारे लगभग सभी देवी देवताओं किसी न किसी वाद्य यंत्र से संबद्ध माने गये हैं. इसी के साथ कहा जाता है भगवान विष्णु का शंख, शिव जी का डमरू, माता सरस्वती और महर्षि नारद की वीणा और श्री कृष्ण की मुरली उनके व्यक्तित्व की खास पहचान मानी जाती है. वहीं अप्सराओं, गंधर्व और किन्नरों की तो मूल पहचान ही नृत्य-संगीत रहा है और मध्य प्रदेश के खजुराहो और उड़ीसा के कोर्णाक मंदिर की दीवारों पर अंकित प्रतिमाओं के साथ हमारे सभी शास्त्रीय वाद्य यंत्रों को दर्शाया गया है, जो बताता है कि संगीत का भारतीय संस्कृति से कितना पुराना नाता रहा है.