आज मनोज बहुत खुश था, क्यों कि उसे आज ऑफिस में अपने अच्छे काम के लिए इनाम मिलने वाला था. इनाम भी कोई ऐसा-वैसा नहीं पूरे महीने के लिए उसे 'पानी' के पास मिलने वाले है यानि की अब मनोज को पूरे महीने रोज घर-घर पानी पहुँचाने वाली कंपनी से एक पानी की केन मिलने वाली थी. इसी ख़ुशी के साथ मनोज सुबह उठा. ज्यादा पानी तो था नहीं एक ग्लास पानी में ही मुंह धोकर कुर्सी पर बैठ गया और चाय का इंतजार करते-करते मोबाइल निकाला और इन्टरनेट पर खबरे पड़ने लगा. पहली ही खबर थी कि एक घड़े पानी के लिए युवक ने की पड़ोसी की हत्या. पूरा इन्टरनेट जुर्म की ख़बरों से भरा पड़ा था, लेकिन मनोज की नजर पानी के कारण होने वाले जुर्म पर अधिक थी. मनोज पुराने दिनों को याद करते हुए सोचता है कि पहले भी क्या दिन हुआ करते थे जब भरपूर मात्रा में पानी हुआ करता था, लेकिन इंसानों के द्वारा की गई पानी की बर्बादी और प्रकति से छेड़छाड़ ने आज दुनिया को कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया.
तभी मनोज की पत्नी चाय लेकर आई और मनोज की अतीत की यादों का पिटारा टूट गया. मनोज वापस सूखे वर्तमान में आ चूका था. मनोज अपनी पत्नी के साथ चाय की चुस्कियां ही ले रहा था, तभी वहां उसका 8 साल का बेटा रोता हुआ आया और अपने पापा से बोला: डैड, मॉम ने मेरा फेवरेट शर्ट फेंक दिया. मनोज ने अपनी पत्नी की ओर देखा, दूर खड़ी पत्नी बोली अब मैं भी क्या करती. मनोज ने झूठी मुस्कान लिए हुए अपने बेटे के सर पर हाथ फेरते हुए कहा: बेटा वो शर्ट गन्दा हो गया था, इसलिए फेंक दिया. मैं तुम्हे वैसा ही दूसरा शर्ट लाकर दे दूंगा. बेटा वहां से खुश होकर चला गया और मनोज कुर्सी पर ही आंखे बंद कर वापस अतीत की आगोश में चला गया और सोच रहा था उन दिनों के बारे में जब इंसान कपड़े धोकर पहनता था. तभी पानी की टप-टप की आवाज से मनोज की नींद खुलती है और वह अपने आप को बिस्तर पर पाता है. मनोज सपने के काले अंधेरे से बाहर आ चूका था. उसके चेहरे पर घबराहट थी और वह दौड़कर बाथरूम में जाकर पानी का नल बंद कर देता है, जिसमे से पानी टपक रहा था. बाहर आकर पसीना पोछतें हुए वह सोचता है: क्या ऐसा सचमुच हो सकता है.
दोस्तों क्या आपने कभी सोचा है कि अगर दुनिया में पानी खत्म हो गया तो क्या होगा? कैसा होगा तब हमारा जीवन? मनोज ने जो सपने में देखा अगर वो हकीकत बन गया तो क्या होगा? क्या होगा जब पानी सिर्फ आँखों में ही रह जाएगा? आमतौर पर ऐसे सवालों को हम और आप कंधे उचकाकर अनसुना कर देते हैं और ये मान लेते हैं कि ऐसा कभी नहीं होगा. काश हम बुनियादी समस्याओं की आंखों में आंखें डालकर गंभीरता से उसे देख पाएं तो तर्को, तथ्यों और हकीकत के धरातल पर महसूस होने लगेगा वाकई हम खतरनाक हालात की ओर बढ़ रहे हैं. कई लोग सोचते है कि जब दुनिया के दो तिहाई हिस्से में तो पानी ही पानी भरा है तो भला कमी कैसे होगी? यहां ये बताना जरूरी होगा कि मानवीय जीवन जिस पानी से चलता है उसकी मात्रा पूरी दुनिया में पांच से दस फीसदी से ज्यादा नहीं है. आँकड़े बताते हैं कि एक भारतीय नारी पीने के पानी के लिए रोज ही औसतन चार मील पैदल चलती है. हर साल 34 लाख लोगों की मौत पानी से होने वाले रोगों से होती हैं. चीन में 70 करोड़ लोग गंदा पानी पीने पर मज़बूर हैं. ये हमारे लिए शर्मिंदगी का विषय है कि विश्व के 1.5 अरब लोगों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल रहा है.
क्या अब भी आप यही कहोगे कि दुनिया में पानी कभी खत्म नहीं हो सकता? आखिर कितना चूसेंगे हम अपनी ही धरती मां को? उस मां की हालत हम लोगों ने अपने लालच से बदतर कर दी है. उसको ज़रूरत से ज्यादा निचोड़ चुके हैं हम. सोचो क्या होगा उस दिन जब धरती माँ के शरीर मे खून भी नही बचेगा तो फ़िर हम क्या पियेंगे. इंसानों को हमेशा जानवर से श्रेष्ठ माना गया है क्यों कि इंसान के पास दिमाग है. सोचने समझने की ताक़त है. लेकिन यह भी सच है कि इसी इंसानी लालच ने रोज़ जंगल काट कर उस धरती माँ को नंगा करने मे कोई कसर नहीं छोड़ी. इसके लिए हमें शर्म आना चाहिए, लेकिन अगर जल्दी ही कुछ नहीं किया गया तो शायद फिर शर्मिंदा होने का भी समय नहीं बचेगा. क्यों कि फिर तो पानी सिर्फ आँखों से ही बहेगा.
पानी पर हमारी निर्भरता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है और पानी के स्रोत दिनों-दिन घटते जा रहे हैं. हम विकास की जिस बेहोशी में जी रहें है उसनें आज हमारी जमीन को बंजर बना दिया है. अधिकांश नदियों, तालाबों, झील का अस्तित्व मिट चूका है, वहीं गंगा, यमुना जैसी जीवन दायिनी नदियों को हम नालों में तब्दील करने की ओर बढ़ रहे है. ऐसा नहीं है कि पानी की समस्या से हम जीत नहीं सकते, लेकिन इसके लिए हमें सही ढ़ंग से पानी का सरंक्षण करना होगा. अगर हम आने वाली पीढ़ी को अच्छा जीवन देना चाहते है तो फिर हमें पानी की व्यर्थ बर्बादी रोकनी होगी. समाज में ऐसी जागरुकता लानी होगी कि छोटे से छोटे बच्चे से लेकर बड़े बूढ़े भी पानी को बचाना अपना धर्म समझें. प्रकृति के खजाने से हम जीतना पानी लेते हैं, उसे वापस भी हमें ही लौटाना है. हमें पानी को दूषित होने से बचाना होगा. हमें धरती को बंजर होने से बचाना होगा.
हमारी सरकार भी इस बारे में सोचती जरूर है, लेकिन उस पर सतही तौर पर बहस करने और दो-चार कागज़ गंदे करने के अलावा आज-तक़ कुछ बड़ा किया नहीं गया. अब समय आ गया है कि पानी को बर्बाद करने वालों के खिलाफ भी कोई कानून बने, ब्रश करते समय नल खुला छोड़ने वालों के खिलाफ भी कोई कानून बने, गंदे पानी को नदियों में मिलाने वालों के खिलाफ भी कोई कानून बने, हर उस शख्स के खिलाफ कानून बने जो किसी भी रूप में पानी को नुकसान पहुंचता हो. वरना, "कहीं सिर्फ आँखों में ही न रह जाएं पानी."
पानी-पानी सब करे बिन पानी सब सून,
अब तो पानी के लिए बने कोई कानून....
कपिल माली