हिंदी के साहित्य जगत में गत रात अंधेरा छा गया, जब वरिष्ठ कथाकार, कवि और आलोचक दूधनाथ सिंह का परलोक गमन हो गया. दूधनाथ सिंह पिछले एक साल से प्रोस्टेट कैंसर से पीड़ित थे. तबीयत बिगड़ने पर उन्हें चार जनवरी को इलाहाबाद के एक निजी अस्पताल में भर्ती करवाया गया था. गुरुवार रात करीब 12.06 मिनट पर उनका निधन हो गया. वे 81 वर्ष के थे. उनके परिवार में दो बेटे और एक बेटी हैं.
उनके अंतिम दर्शनों के लिए पार्थिव शरीर को झूसी स्थित उनके आवास पर लाया गया है. आज उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. उत्तर प्रदेश के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान भारत भारती से सम्मानित वरिष्ठ साहित्यकार के निधन से पूरा हिन्दी जगत ग़मगीन है. दूधनाथ सिंह ने उन्होंने ओ नारी, खुश होना अनैतिक है इस समाज में, भूल गया सब कुछ और अभी तुम हो रास्ते में जैसी कविताएं लिखीं. उन्होंने अपनी शताब्दी के नाम, सपाट चेहरे वाला आदमी, सुखान्त ,सुरंग से लौटते हुए, निराला:आत्महन्ता आस्था, पहला क़दम जैसे साक्षात्कार और आलोचनात्मक निबंध लिखे. इनके अलावा ‘दो शरण’ नाम से निराला जी की कविताओं का संकलन भी किया.
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से हिंदी साहित्य में एमए की डिग्री हासिल करने के बाद दूधनाथ सिंह आगे अध्यापन के लिए कोलकाता गए. उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्राध्यापक के तौर पर भी काम किया है. उनकी सेवानिवृत्ति 1994 में हुई थी. उन्होंने कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचना सहित बहुत सी विधाओं में लेखन कार्य किया है. उनका निधन साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति है.
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