नई दिल्ली: विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इतिहासकार विक्रम संपत की किताब *“टीपू सुल्तान: द सागा ऑफ मैसूर इंटररेग्नम 1761-1799”* के विमोचन कार्यक्रम में हिस्सा लिया। इस दौरान उन्होंने कहा कि इतिहास जटिल है और राजनीति अक्सर तथ्यों को अपने अनुसार चुनने की कोशिश करती है। टीपू सुल्तान के मामले में भी ऐसा ही हुआ है।
उन्होंने कहा कि टीपू सुल्तान के शासनकाल को लेकर मैसूर में धारणा उतनी सकारात्मक नहीं है, क्योंकि इतिहास में उनके शासन से जुड़े पक्षों पर कम ध्यान दिया गया है। हालांकि, अंग्रेजों के खिलाफ उनकी लड़ाई को ज्यादा महत्व दिया गया है। जयशंकर ने कहा कि टीपू सुल्तान को लेकर एक खास तरह की कहानी बनाई गई है। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि हमारे इतिहास का कितना हिस्सा छुपाया गया है या छोटा करके पेश किया गया है।विदेश मंत्री ने बताया कि पिछले दस सालों में देश में अलग दृष्टिकोणों को भी जगह मिली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में वोट बैंक की राजनीति से परे जाकर इतिहास को नए नजरिए से देखने की शुरुआत हुई है। उन्होंने कहा कि टीपू सुल्तान एक जटिल व्यक्तित्व थे। वे एक ऐसे शासक थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन का विरोध किया, लेकिन उनकी हार और मृत्यु ने भारत के भविष्य को गहराई से प्रभावित किया।
जयशंकर ने यह भी कहा कि टीपू सुल्तान के ब्रिटिश विरोध का कारण पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। यह आंशिक रूप से स्थानीय राजनीतिक संघर्ष और आंशिक रूप से विदेशी समर्थन की तलाश से प्रेरित हो सकता है। उन्होंने यह भी बताया कि टीपू ने धर्म आधारित समर्थन के लिए तुर्की, अफगानिस्तान और ईरान के शासकों से संपर्क किया था। उनका मानना है कि उस दौर में राष्ट्रीयता जैसी भावना नहीं थी, जो आज के समय में है। जयशंकर ने विक्रम संपत की इस किताब की तारीफ की और कहा कि इसमें टीपू सुल्तान के जीवन और इतिहास को समझने के लिए नई दृष्टि प्रदान की गई है।